हाथों में चिलम,तन पर भस्मी, आस्था की डुबकी लगाने उज्जैनी से निकले सन्यासी, देखें विहंगम दृश्य
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हाथों में चिलम,तन पर भस्मी, आस्था की डुबकी लगाने उज्जैनी से निकले सन्यासी, देखें विहंगम दृश्य
AiNभारत न्यूज़ संवाददाता सतीश द्विवेदी की ख़ास रिपोर्ट लालापुर प्रयागराज
प्रयागराज महाकुंभ में एक बार फिर आस्था का सैलाब उमड़ने वाला है. करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से गंगा में डुबकी लगाने पहुंचेंगे. प्रयागराज में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने महाकुंभ का भव्य आयोजन किया है.इस महाकुंभ में बड़े-बड़े साधु-संत, नागा साधुओं का रेला पहुंचना शुरू हो गया है. वहीं मध्य प्रदेश से भी साधुओं की टोली प्रयागराज से रवान हो गई है.महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ 13 जनवरी 2025 को होगी. कुंभ का स्नान सिर्फ स्नान नहीं है, बल्कि इसे एक आध्यात्मिक प्रक्रिया मानी जाती है. यह 45 दिनों तक चलेगा. जो 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ इसका समापन होगा.कुंभ के अपने रंग और कहानी है. महाकुंभ के दौरान आस्था का अलग ही नजारा देखने मिलता है. करोड़ों की भीड़ एक साथ जब गंगा में डुबकी लगाते हैं, तो यह दृश्य किसी को भी मनमोहित कर सकता है. मध्य प्रदेश के उज्जैन से बड़ी संख्या में नागा साधु प्रयागराज के लिए निकल चुके हैं.हाथों में चिलम, शरीर पर भस्मी लगाए, लहराती जटाएं और जय भोलेनाथ के नारे लगाते हुए बड़ी संख्या में साधु महाकुंभ में शामिल होने पहुंच रहे हैं. चारों दिशाओं से साधु और नागा साधुओं का जत्था प्रयागराज पहुंच रहा है.कुंभ में नागा साधु महत्वपूर्ण माने जाते हैं. कहा जाता है कि 8वीं सदी में शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के सैनिकों के रूप में नागा साधुओं को स्थापित किया था. ये वहीं सैनिक थे, जो धर्म की राह पर चले थे.नागा साधुओं में महिलाएं भी होती हैं. नागा साधुओं के लंबे होते हैं, उनके तन पर एक भी कपड़ा नहीं रहते हैं. कई नागा साधु अपने शरीर पर भस्मी भी लपेटे रहे हैं.आपको बता दें महाकुंभ 2025 का आयोजन इस बार प्रयागराज में किया जा रहा है. यह एक प्राचीन परंपरा है. जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होता है. जो कि प्रयागराज, उज्जैन, नाशिक और हरिद्वार है.हर 12 साल के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होता है. हर स्थान पर 12 साल में एक बार कुंभ का आयोजन किया जाता है. शास्त्रों के मुताबिक कुंभ मेले की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है. ऐसी मान्यता है कि अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नाशिक में गिरी थी. जिससे ये स्थान पवित्र माने जाते हैं.इसके साथ ही अर्धकुंभ मेला हरिद्वार और प्रयागराज में 6-6 साल के अंतराल में होता है. यह आयोजन धार्मिक, अध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. महाकुंभ को लेकर प्रयागराज में प्रशासन ने चाक-चौबंद व्यवस्था की है.