जीवन जीने की कला सिखाती है श्रीमद्भागवत कथा- ज्ञानेश्वर जी महाराज
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जीवन जीने की कला सिखाती है श्रीमद्भागवत कथा- ज्ञानेश्वर जी महाराज
AiN भारत विनीत द्विवेदी शंकरगढ़ प्रयागराज
यमुनानगर (बारा)
लालापुर क्षेत्र के डेराबारी गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा का वर्णन किया गया।सुदामा के निश्छल भक्ति भाव व मित्रता की कथा आज भी मिशाल के रूप में पेश की जाती है। व्यासपीठ से बोलते हुए कथावाचक श्री ज्ञानेश्वर जी महाराज ने बताया कि दो लोगों की मित्रता ऐसी होनी चाहिए कि शरीर भले ही अलग-अलग हो, लेकिन मन से एक होना चाहिए। आजकल के नवयुवकों की तरह मित्रता करने वाले को महापाप लगता है। आजकल तो लोग दूसरे का धन लेने, घर परिवार पर कुदृष्टि डालने के लिए ही मित्रता की जाती है। श्री महाराज जी ने कहा कि- दोष तीन कर दें अलग, लालच,मतलब,दाम। दो सत्यवादी जब मिलें, तो दोस्ती उसका नाम।। है अर्थ यही तो दोस्ती का दोनों में दोष न हो कोई। तन तो हों,दो, पर प्राण एक,ईर्ष्या, या रोष न हो कोई।।भागवत कथा के मुख्य यजमान हरिओम रंजना द्विवेदी रहे ।इस मौके पर शिव ओम द्विवेदी, मुन्ना द्विवेदी, ननकू महराज, विमलेश चंद्र, रवि पांडेय, गोलू पांडेय, सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे ।