December 13, 2025 03:07:08

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इतिहास दुर्लभ संजोड़े संथारे के पथिक जसोल निवासी पुखराज जी संकलेचा (नगरवाला) ने सम्पूर्ण सिवांची – मालाणीं की धरा को कर दिया गौरवान्वित।

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इतिहास दुर्लभ संजोड़े संथारे के पथिक जसोल निवासी पुखराज जी संकलेचा (नगरवाला) ने सम्पूर्ण सिवांची – मालाणीं की धरा को कर दिया गौरवान्वित।

राजस्थान स्टेट ब्यूरो अशरफ मारोठी की खास खबर

इस जगत में प्रति दिन लाखों व्यक्ति जन्म लेते है और असंख्य व्यक्ति इस संसार से अलविदा भी हो जाते है लेकिन जीवन सफल उन्हीं का होता है जो किसी उद्देश्य के साथ जीते हैं। सही मायनों में वे व्यक्ति अमर हो जाते है जिन्होंने अपने चिंतन कर्म व जीवनशैली से परिवार, समाज, धर्मसंघ, गांव, राज्य व राष्ट्र को गौरवांवित किया हो,सिवांची-मालाणी की पुण्यधरा के अंतर्गत जसोल नगर के निवासी श्री पुखराज जी संकलेचा (नगरवाला) की गणना भी ऐसे विरले व्यक्तियों में की जाएगी। श्री पुखराज जी संकलेचा ने 82 वर्ष की उम्र में तीसरे व अंतिम मनोरथ को पूर्ण करने हेतु संथारे की उत्कृष्ट भावना मन मे संजोई और अमरत्व की इस यात्रा की और आगे बढ़ गए। परिवार जनों के समक्ष संकलेचा ने अपना लक्ष्य दोहराया और उनके इस मनोरथ को पूर्ण करने हेतु परिवार के सभी सदस्यों ने पूर्ण समर्पण भाव से अपनी स्वीकृति प्रदान की। बुधवार 28 दिसम्बर 2022 की वो पावन बेला जिस दिन युग प्रधान आचार्य महाश्रमण जी की आज्ञा से मुनि श्री सुमतिकुमार जी ने परिवार जनों व सगे-सम्बन्धियों तथा समाज अग्रणियों की मौजूदगी में संकलेचा को तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया। इस अवसर पर साध्वी श्री प्रमोद श्री जी की भी प्रेरक उपस्थिति रही। सम्भवत यह विरला व इतिहास दुर्लभ संयोग ही होगा कि सात फेरों के बंधन में बंधी व जन्मों जन्मों तक साथ निभाने वाली पुखराज जी संकलेचा की अर्धांगिनी श्रीमती गुलाबी देवी ने अपने प्रिय के इस दृढ़ मनोबल व अनुपम मनोरथ के हिमालयी लक्ष्य को देख इस पथ पर साथ देने की ठानी व वे भी पूर्ण चेतन अवस्था मे इस राह की और अग्रसर हो गई। चूंकि तप यात्रा की और तो वे अपने पतिदेव के संथारा पच्चखान के साथ-साथ ही गतिमान हो गई थी, सम्भवत संथारा साधक श्री पुखराज जी संकलेचा व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा ने युगप्रधान आचार्य महाश्रमण जी के उस कथन को आत्मसात कर दिया होगा कि-“मौत एक वास्तविक अतिथि है। वह बिना तिथि, दिनांक दिए ही आती है। इस अतिथि के स्वागत की तैयारी सदा ही रखनी चाहिए”। जब इरादे बुलंद हो और भावना उच्च हो तो प्रभु भी दर्शन देने अपनी चौखट पर दस्तक दे देते है। कुछ ऐसा ही विरला संयोग हुआ। संयोगवश शांति दूत युग प्रधान परम् श्रद्धेय आचार्य महाश्रमण जी मय अहिंसा यात्रा के मरुधरा के आंचल सिवांची-मालाणी की धरा पर पधारे हुए थे, दूसरी और पुखराज जी संकलेचा संथारे के मनोरथ को पूर्ण करने हेतु दृढ़ संकल्पित थे। तो पूज्यप्रवर के चरण नगर वाला परिवार के आवास की और बढ़े व उन्हें आध्यात्मिक सम्बल प्रदान करने ज्योतिचरण स्वयं संकलेचा निवास में पगलिया करने पधार गए। प्यासे व्यक्ति को अपनी प्यास बुझाने समंदर के पास जाना ही पड़ता है लेकिन समंदर स्वयं ही प्यासे व्यक्ति की दर तक पहुंच जाए तो इतिहास की अनोखी घटना ही कहलाएगी। पूज्य गुरुदेव की सन्निधि पाकर संथारा साधक पुखराज जी के मनमस्तिष्क में उमड़ते भावों का आकलन नही किया जा सकता, क्योंकि ऐसे अप्रितम भावों को मापने का कोई यंत्र आज दिन तक निर्मित नही हो पाया। परिवार जनों के लिए पूज्य गुरुदेव का पावन-पवित्र सान्निध्य सचमुच में गौरव की अनुभूति से लबालब व पुण्य के उदय से ओतप्रोत था। वे पल और भी अनुपम व अद्वितीय बन गए जब पुखराज जी संकलेचा के साथ-साथ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गुलाबी देवी ने भी पूज्यप्रवर की सन्निधि में 6 जनवरी 2023 को प्रातः 10,51 की पावन बेला में पतिदेव संथारा साधक पुखराज जी संकलेचा, सपुत्र सुशील संकलेचा एवं कांतिलाल संकलेचा तथा समस्त परिवारजनों की स्वीकृति से तिविहार संथारा-सलेंखना के मनोरथ को स्वीकारा। पूज्य गुरुदेव ने श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा को यावद जीवन तिविहार संथारे का पच्चखान करवाया। पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में उस दिन श्रीमती गुलाबी देवी की 10 दिन की तपस्या सजोड़े संथारा सलेंखना में परिवर्तित हो गई। चूंकि श्रीमती गुलाबी देवी ने अपने पतिदेव की संथारे की भावना के साथ ही साथ मन ही मन मे इस पथ की पथिक बनने की ठान ली थी और पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में इस व्रत को स्वीकार भी दिया। युगप्रधान आचार्य महाश्रमण जी ने जसोल के नाकोड़ा रोड़ स्थित न्यू तेरापंथ भवन में अपने प्रातःकालीन प्रवचन में पुखराज जी संकलेचा व श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा के सजोड़े संथारे पर विशेष उद्गार प्रकट करते हुए इतिहास की दृष्टि से इस संथारे को अद्वितीय व दुर्लभ संयोग बताया। गुरूदेव ने वहां मौजूद वरिष्ठ सन्तजनों व साध्वी प्रमुखा जी आदि की और मुख़ातिब होते हुए विवेशना की कि मैंने मेरे जीवन मे तो सजोड़े संथारे का संयोग नही देखा। गुरूदेव के उद्गारों से न बल्कि संकलेचा परिवार, न सिर्फ जसोल नगर अपितु सम्पूर्ण सिवांची-मालाणी की धरा गौरवान्वित व धन्य-धन्य हो गई। और जसोल के सुश्रावक पुखराज जी व सुश्राविका श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा के अदम्य साहस भरे इस सजोड़े संथारे के मनोरथ से सम्पूर्ण तेरापंथ धर्म संघ में नव इतिहास का सृजन हो गया। और जहां चाह वहां राह वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए पुखराज जी संकलेचा का यह मनोरथ पूर्ण भी हो गया। शनिवार 14 जनवरी 2023 मकर सक्रांति के दिन प्रातः 5.35 बजे आप श्री का 18 वें दिन में संथारा सीजने के साथ ही आप अपने उच्च भावों के साथ प्रयाण कर गए और अमरत्व की दिशा में कदम बढ़ा गए। पुखराज जी का जन्म 2 नवम्बर 1939 में मालाणी धरा के अंतर्गत जसोल नगर के प्रतिष्ठित संकलेचा (नगरवाला) परिवार के श्री प्रेमचंद जी एवं श्रीमती खम्मा देवी के यहां हुआ था। परिवार में आप 8 भाई व 3 बहिनों में सबसे ज्येष्ठ थे। आपने 1960 के उस दौर में जब B Com स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी तब सिवांची-मालाणी विस्तार के जैन समुदाय में पढ़ाई की बजाय व्यापार-व्यवसाय को प्रधानता प्राथमिकता प्रदान की जाती थी। आपने अध्ययन पूर्ण कर आंध्रप्रदेश के राजमुंदरी शहर स्थित एक पेपर मिल में बतौर फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। लघुवय में आपके पिता प्रेमचंद जी संकलेचा के आकस्मिक निधन से परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आप श्री एवं अनुज भाई स्वo डूंगर चंद जी संकलेचा के कंधों पर आ गई, जिसे आप दोनों ने कुशलतापूर्वक पूर्ण की व सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में पिरोये रखा। यह उल्लेखनीय है कि श्री पुखराज जी संखलेचा विश्वप्रसिद्ध नाकोड़ा जैन तीर्थ के दो बार ट्रस्टी के रूप में अपनी श्रेष्ठ सेवाएं प्रदान कर चुके हैं। आपने जसोल के ओसवाल समाज व तेरापंथ समाज मे भी अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान की थी। आप प्रबुद्ध व्यक्तित्व के धनी थे। समाज, राष्ट्र, राजनीति, प्रशासन आदि विषयों पर आप गहरा चिंतन व सटीक राय रखते थे। आप की अर्धांगिनी श्रीमती गुलाबी देवी एक धर्मपरायण एवं तपस्वी महिला है आपका संथारा आज आठवें दिन (10 दिवसीय तपस्या सहित) उच्च भावों के साथ प्रवर्धमान है। पुखराज जी संखलेचा का सम्पूर्ण परिवार धर्म-अध्यात्म के प्रति समर्पित है। आपकी संसार पक्षीय दोहिती साध्वी  मैत्री यशा जी व परिवार से ही तपोमूर्ति मुनि  पृथ्वीराज जी एवं साध्वी  तरुणयशा जी अपने समर्पण से भिक्षु शासन के गौरव में अभिवृद्धि कर रहे है। पुखराज जी संकलेचा के उच्च मनोरथ के साथ प्रयाण पर ह्रदय की अंतरंगता से श्रद्धासुमन।

सम्भवत  पुखराज जी संकलेचा ने कवि की इन पंक्तियों को आत्मसात कर दिया था, श्रीमती गुलाबी देवी संकलेचा के भी यही भाव होंगे

 

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