October 3, 2025 23:51:24

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शिवलिंग का स्वयं भू रूप में प्रगट होना ,शिव का बिराजमान होना

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शिवलिंग का स्वयं भू रूप में प्रगट होना

इस मन्दिर में शिव जी का विशाल लिंग है ।यह शिवलिंग दो भागों मे विभाजित है एक भाग को माता पार्वती व दूसरे भाग भगवान शिव के रूप में माना जाता है इस स्थान की विशेषता है कि कि इन दो भागों के बीच का अन्तर ग्रहो व नक्षत्रों के अनुरूप घटता है बढ़ता है शायद यही विशेषता आदि काल से चली आ रही है जहां आज के युग को अपना प्रत्यक्ष प्रमाण देते है हुए भगवान ने ऐसी विशेषता अपनाई हो, इस मन्दिर का इतिहास दन्त कथाओं एवं किवदनितयो के अनुसार पुराणों से जुडा हुआ है जैसे कि शिव पुराण में वर्णित कथा नुसार श्री ब्रह्मा जी व विष्णु जी का आपस मे बडप्पन के बारे मे युद्ध हुआ तो दोनों एक-दूसरे पर भयानक अस्त्रो शस्त्रों से प्रहार करने लगे तब भगवान शिव शंकर आकाश मण्डल में छिपकर ब्रह्मा एवं विष्णु का युद्ध देखने लगे, दोनों एक-दूसरे के वध की इच्छा से महेशवरऔर पाशुपात अस्त्र का प्रयोग करने में प्रयासरत थे कयोंकि इनके प्रयोग होते ही त्रैलोक्य भस्म हो जाता, इस महाप्रलय रूप को देखकर भगवान शंकर जी से रहा ना गया
उनका युद्ध शांत करने के लिए भगवान शंकर महागिन तुल्य एक स्तंभ के रूप में उन दोनों के बीच में प्रगट हुए,इस महागिन के प्रगट होते ही ब्रहमा जी व विष्णु जी के
अस्त्र स्वयं शांत हो गये, यह अदभुत दृश्य देखकर ब्रह्मा और विष्णु जी आपस मे कहने लगे कि यह अगिन स्वरूप सत्मभ क्या है, हमें इसका पता लगाना चाहिए
ऐसा निशचय कर भगवान विष्णु जी शूकर का रूप धारण कर आकाश की और गमन किया विष्णु जी पाताल मे बहुत दूर तक चले गयें परन्तु जब बहुत समयोपरानत भी स्तंभ के मूल का पता ना चल सका तो वापिस चले आए, उधर ब्रम्हा जी ने आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु जी के पास आए तथा झूठा विशवास दिलाया कि सत्मभ का शीर्ष मै देख आया हूँ, जिसके ऊपर केतकी का फूल था तब भगवान विष्णु जी ने ब्रहमा जी के चरण पकड़ लिए,
ब्रम्हा जी के छल को देखकर आशुतोष भगवान शंकर महादेव जी को प्रगट होना पडा और विष्णु जी ने उनके चरन पकड़ लिए, विष्णु जी महानता से शिव महादेव जी प्रसन्न हो गये उन्होंने कहा कि हे विष्णु तुम बड़े सत्यवादी हो, अतः मै तुमहे अपनी समानता प्रदान करता हूँ ब्रम्हा और विष्णु जी के मध्य हुए युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव जी को महागिन तुल्य सत्मभ के रूप प्रगट होना पडा यही काठगढ महादेव विराजमान शिव लिंग जाना जाता है।

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