उलझ गई चुनाव की गणित, खुल गई पंडितों की दुकान, किस काम का दल बदलू कानून
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उलझ गई चुनाव की गणित
खुल गई पंडितों की दुकान
किस काम का दल बदलू कानून
आज 30 अक्टूबर को 2024 के विधानसभा चुनावों को लेकर अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, लेकिन अभी तक दोनों प्रमुख दलों के सभी उम्मीदवारों की सूची तक जारी नहीं हुई, लगभग 100 से ज्यादा कांग्रेस में उम्मीदवार घोषित नहीं हुए और उधर भाजपा में भी लगभग 75-80 सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं हुए। जबकि चुनाव को अब एक महिना भी नहीं बचा और मतदान को मात्र 25 दिन और इन 25 दिनों में क्या कर लेंगे, क्योंकि 25 में से 10 दिन दीपावली और भाई दूज के निकाल दो तो शेष 15 दिन चुनावी रण के लिए कत्तई पर्याप्त नहीं।
इस बार के चुनावों में जिस तरह दोनों पार्टियां उलझी हुई हैं ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं हुई, और स्पष्ट रूप से यह एक मात्र राजस्थान ही है जहां चुनावों को लेकर दोनों पार्टियों की हालत इस बार पेचिदा है। एक तरफ भाजपा में मैराथन पर मैराथन बैठकें हो रही हैं लेकिन माफिक नतीजा नहीं निकल रहा। कुछ सीटों को लेकर दिल्ली के समझौता कर लेने के बाद भी स्थिति काबू में नहीं। भाजपा में ऐसी बगावत पहले कभी नहीं हुईं। यद्यपि कमोबेश यही स्थिति कांग्रेस की भी है। लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस में इतने विकट हालात नहीं। भाजपा में जो हालात बिगडे उसका जिम्मेदार केन्द्र ही है। केन्द्र की हठधर्मिता ने प्रदेश भाजपा में इस कदर बिखराव पैदा कर दिया जो सुलझाए नहीं सुलझ रहा। केन्द्र ने दो-तीन महीने तो इसी बात को सोचने में खर्च कर दिए कि वसुंधरा राजे को साथ रखें या नहीं। अब जब पूरी ताक़त खंडहर बन गई तब जाकर वसुन्धरा की याद आई, जबकि उधर कांग्रेस ने भाजपा के बिगडे हालात को देख कर समझदारी की। उसने तत्काल सारे विवादों को विराम लगा दिया और गहलोत तथा सचिन को साथ लेकर चल दिए।
यहां एक मजेदार बात देखिये कि पीएम भाजपा से हैं लेकिन उन्होंने कभी भाजपा को दगा नहीं दिया। लेकिन उनकी कूटनीति में अन्य पार्टियों के कई नेता दगाबाज बन भाजपा में चले गए, बावजूद पीएम भी अनेक भाजपाइयों को अपनी पार्टी छोड कर कांग्रेस में शामिल होने से नहीं रोक पाए। चूंकि यह राजनीति है, इसमें अमूमन लोग जन सेवा करने नहीं बल्कि सत्ता सुख की मलाई खाने आते हैं। जन सेवा करने के लिए पार्टी बदलने की जरूरत है ही नहीं। लेकिन यह करता कौन है।
यह राजनीति है और इसमें जो भी पार्टी सत्ता में आती है वह जनता के कटोरे में घोषणाएं भरने आती है, घोषणाएं भरती है और सत्ता के सिंहासन पर बैठने चली जाती है। पार्टियां बदलने वाले नेता सत्ता सुख के लिए ही पार्टियां बदलते हैं। हमारे बुजुर्गो ने ऐसे लोगों के लिए एक कहावत गढी है कि जहां देखे चिकना, वहीं बंदे का टिकना। आजादी से अब तक देश की राजनीति में यही हो रहा है।गोद जाने और नाते जाने की प्रथा हमारे देश में युगों-युगों से चली आई है और चलती रहेगी। बरसों पहले दलबदलुओं के खिलाफ कानून बना था लेकिन बाद में वह गांठ बांध कर रख दिया गया। समझ में नहीं आता कि जब हम कानून की पालना करते ही नहीं तो ऐसा कानून बनाते ही क्यों हैं ॽ बडी विचित्र स्थिति है यह कि कोई किसी को भगा कर ले जाए तो कानूनी कार्रवाई हो जाती है लेकिन राजनीति में कोई किसी को पटा कर अपनी पार्टी में ले जाए तो कोई कार्रवाई नहीं होती। इसीलिए पार्टियां बदलने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। एक को रोको तो दो भाग रहे हैं।
मौजूदा स्थिति यह है कि भाजपा में 26 सीटों पर अभी भी कलह है। जयपुर के ही किशनपोल, हवा महल, आदर्शनगर और सिविल लाइंस में बात अब तक नहीं बनी है। इसके बाद भरतपुर, शेरगढ, जोधपुर शहर, सरदारपुरा ने हाल बेहाल कर रखा है। इधर आचार संहिता लागू हो जाने के बाद भी उसके उल्लंघन करने वाले कम नहीं हो रहे। मात्र 10 दिनों में ही निर्वाचन आयोग को 9,300 शिकायतें प्राप्त हो चुकी हैं। सख्त आदेश और निर्देश के बावजूद उल्लंघन की वारदातें थम नहीं रही। यहां सभी को पार्टी का टिकट चाहिए। नहीं मिला तो निर्दलीय लड़ेंगे पर लड़ेंगे जरूर। यह नेतागिरी का चस्का है ही ऐसा। इसका भूत एक बार चढा तो फिर नहीं उतरता, चाहे जितना मंत्र जाप कर लो। ऐसे में हमारे पोंगा पंडितों की भी पौ-बारह है। भले ही ज्योतिष धेला भर नहीं आती हो लेकिन तिलक लगाकर, पोथी पाने लेकर बैठ जाते हैं। यह जानते हैं कि मुर्गे आएंगे ही, और उन्हें मूर्ख बनाना इन्हें बखूबी आता है। चूंकि यही मौसम है नेताओं से दबा कर चांदी कूटने का। पूरे पांच साल ये आम जनता को रेवड़ियां बांटते हैं लेकिन चुनाव के मौके पर ये फेंकू ज्योतिष इन्हें मूर्ख बना कर इन्हें इनके सितारे बुलंद बता कर तबियत से पैसा कूटते हैं और ये हाथ जोड कर देते हैं।
कांग्रेस और भाजपा के बाद आम आदमी पार्टी ने भी अपने 44 उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं तो आरएलपी पार्टी ने भी ताल ठोक दी है। कुछ जगह तयशुदा वह खेल बिगाडेगी। भाजपा सनातनी पार्टी है, उस पर कोई छापामारी नहीं हो रही है लेकिन कांग्रेस का ईडी ने जीना हराम कर दिया है। घोर आश्चर्य इस बात का कि ईडी के छापे की खबरें सभी अखबारों में बढ़-चढ़ कर छप रही हैं लेकिन जहां ईडी के हाथ कुछ नहीं लग रहा, न तो ऐसी खबरें ईडी बता रही है और न ही कोई अखबार छाप रहा है। कितनी गर्त में आ गई है आज की पत्रकारिता। लेकिन क्या करें जी, पापी पेट का सवाल है। यह सब करना पडता है।