पुराने जलश्रोत कुओं का अस्तित्व खतरे मे
1 min readमहराजगंज,कुएं का जल संरक्षण के लिए काफी महत्व है लेकिन कुएं का जल संरक्षण के लिए काफी महत्व है, प्राय: कुएं जागरूकता व देखरेख के अभाव में पट गए हैं। जो थोड़े बहुत हैं वे पटने के कगार पर हैं। कुछ कुओं में जलस्तर अच्छा है लेकिन जागरूकता के अभाव में गंदगी कुएं में बढ़ रही है जिससे कुएं का पानी का उपयोग नहीं हो पा रहा है। लोग कुएं में ही गंदगी फेंक देते हैं।
कुएं का जल संरक्षण के लिए काफी महत्व है लेकिन कई जगहों के प्राय: कुएं जागरूकता व देखरेख के अभाव में पट गए हैं। जो थोड़े बहुत हैं वे पटने के कगार पर हैं। कुछ कुओं में जलस्तर अच्छा है लेकिन जागरूकता के अभाव में गंदगी कुएं में बढ़ रही है जिससे कुएं का पानी का उपयोग नहीं हो पा रहा है। लोग कुएं में ही गंदगी फेंक देते हैं।
जिससे मध्यम वर्ग के लोग जल पीने के अलावा निस्तारी के लिए भी जल का उपयाेग करते थे। सामर्थ्य लोग अपने पूर्वजों की याद में सार्वजनिक कुएं बनवाते थे।शादी विवाह मे महिलाये जगत का पूजन कर अपने कार्यक्रम को सफल बनाती थी,साथ ही जिन घरों में कुंआ होता था वे संपन्न लोगों में गिने जाते थे। यह प्राकृतिक व मीठा जल का प्रमुख स्त्रोत होता था। सार्वजिनक कुंए भी खुदवाए जाते थे ताकि उस कुंए के शीतल जल से प्यास बुझाने के बाद प्यासा दुआएं दे। समय के साथ ये धरोहर दफन हो रही है। समय के साथ आधुनिक हो रहे लोगों के घरों में सहुलियतें बढ़ती गई और लोगों ने अपने घरों में बोर और हैंडपंप लगवाना शुरू कर दिया। धीरे धीरे कुंओं का अस्तित्व कम होने लगा।अब नाम मात्र के कुएं दिख रहे है और जो कुंए अभी दिख रहे है उसे मोहल्लेवासियों द्वारा कचरा डालकर पाटने का प्रयास किया जा रहा है,पहले इन कुंओं से पूरा मोहल्ला पानी पीने का काम लेता था अब धीरे धीरे कुएं विलुप्त होते जा रहे हैं। लेकिन भू जल के इस प्राकृतिक स्त्रोत की महत्ता एक बार फिर बढ़ गई है। पानी के संरक्षण के लिए अस्तित्व से जूझ रहे तालाबों व कुंओं का महत्व बढ़ गया है।
*कचरा पात्र बना पुराना कुआ*
वो भी एक पुराना समय था जब परम्परागत जल स्त्रोतों कुए व बावड़ियो पर पणिहारियों के पायल के साथ चहल पहल रहती थी। लोग कुओं से पेयजल के लिए निर्भर रहा करते थे, लेकिन उन परम्परागत जल स्त्रोतों पर सुनसान व वीरान का पहरा लगने लगा है। अब यह बीते जमाने की बात हो गए है
वर्तमान में हैडपंप व नलकूप जैसे जल स्त्रोतों ने लोगों के बीच अपनी जगह बना ली है। परम्परागत जल स्त्रोतों की सार सम्भाल नहीं होने से वे दुर्दशा का शिकार बन गए है। वर्तमान में परम्परागत जल स्त्रोतों को या तो जमीन के नीचे दबा कर बंद कर दिया गया है।
कैलाश सिंह क्राइम ब्यूरो महराजगंज AIN भारत NEWS