सत्ता की चाबी जनता के हाथ क्या होगा आगामी चुनाव
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सत्ता पाने की लालसा सबको रहती है राजनीतिक दल यह भी जानते हैं कि सत्यता की चाभी जनता के हाथ में है फिर भी वो आम आवाम की समस्या पर पांच साल कोई ध्यान नहीं देते या युं कहें कि जनसमस्याओं पर कभी भी ध्यान नहीं देते यही कारण है कि पांच साल सत्ताधारी दल सत्यता के मद में मदमस्त रहते हैं तो विपक्षी जनसमस्याओं पर आवाज उठाने की जगह गठजोड़ में व्यस्त रहते हैं इतना ही नहीं चुनावी मंचों पर भी जन समस्याओं से अधिक जाति व धर्म पर ही अधिक जोर दिया जाता है किसी भी गांव समाज या देश की मूल आवश्यकता है शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार जबकि विपक्षी जहां इन विषयों पर चुप रहते हैं वहीं सत्ता पाकर हर दल इसका बाजारीकरण करते हैं इन सबसे परे आम आवाम की एक और बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार किन्तु इन समस्याओं को जाति व धर्म की घुट्टी पिलाकर गौड कर दिया जाता है जो इस झांसे में नहीं आते उन्हें संसाधन के जरिए संतुष्ट कर दिया जाता है।
वर्तमान परिदृश्य में ही देखें तो महज 6 माह बाद लोकसभा चुनाव है किन्तु बुनियादी मुद्दों पर किसी भी राजनीतिक दल का जोर नहीं है सत्ताधारी भाजपा ने राष्ट्र व जाति धर्म के नाम पर दो बार पूर्ण बहुमत से सत्ता पर्याप्त कर एक बार पुनः प्रयासरत है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी समाज में सिर्फ जातिवाद फैला रही है वह भाजपा के हिन्दुत्ववादी मतों को अपने तरफ करने हेतु स्वामी प्रसाद मौर्य के माध्यम से सनातन धर्म व धार्मिक पुस्तकों का विरोध कर रही है वो समाज के पिछड़ेपन का कारण धार्मिक अंधता वह उसके आंड में शोषण बता रही है पर बड़ा सवाल धार्मिक अनुष्ठान जब करेंगे तब धर्म के नाम पर कोई आपसे दक्षिणा के तौर पर आपकी जमा पूंजी लेगा किन्तु आये दिन किसी भी विभाग व उसके कार्यालय में जायें तो संविधान आधारित पदों पर आसीन होकर जनता के टैक्स से सृजित राजकोष से लाखों वेतन उठाने वाले आम आवाम के समस्या समाधान हेतु उसका शोषण कर रहे हैं किन्तु इसपर जागरूकता फैलाने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन करने से पीछे हटते हैं कारण सत्ता में पहुंचकर उन्हीं संविधान के दर्शाया नियुक्त कर्मचारियों के माध्यम से उन्हें भी जेब गरम करनी है बहुजन समाज पार्टी है तो वो न केवल हर मुद्दे पर पांच साल चुप्पी साधे रहती है अपितु अब तो चुनाव में भी अन्य दलों की अपेक्षा सुस्त ही रहती है शेष कांग्रेस,आम आदमी पार्टी,रालोद,जेडीयु जैसे दल जिनका या तो जनाधार है नहीं या को चुके हैं वो भी ऐसे बेसिक मुद्दों के जरिए अपना कद बढ़ाने की जगह गठजोड़ के जरिए पद खोज रहे हैं। जनता है कि वोट राजनीति दलों को ही वो भी संसाधन से मजबूत लोगों को मतदान करती है वो भूल जाती है कि धनबल व दल-बल के आधार पर जीते लोग कभी बेसकीमती मतों का मूल्यांकन नहीं कर सकते ।।
ऐसे में बड़ा सवाल 2024में मतदान किसे?
राजनीतिक दल सुनेंगे नहीं,निर्दल आप चुनेंगे नहीं