October 3, 2025 20:33:57

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होली पर सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर में बघेली फगुआ गान।

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होली पर सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर में बघेली फगुआ गान।

 

AiN भारत न्यूज़ ब्यूरो रिपोर्ट प्रयागराज

 

यमुनानगर के बारा तहसील अंतर्गत भटपुरा ग्राम के सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर में होली का त्योहार इस वर्ष जबरदस्त उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। भटपुरा क्षेत्रों में लोग रंग-गुलाल और अबीर से एक-दूसरे को रंग लगाकर शुभकामनाएं दे रहे हैं, वहीं सिद्धेश्वर मंदिर में पारंपरिक फाग गायन की धूम मची हुई। बता दें कि, सिद्धेश्वर मंदिर में फाग गायन या फगुआ की सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा है। आसपास के ग्रामीण इलाकों में फगुआ गीतों की गूंज सुनाई देगी। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर गाए जाने वाले ये गीत यहां की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। स्थानीय भाषा में इन्हें ‘फगुआ’ या ‘फाग’ कहा जाता है।इतिहासकार हनुमान शुक्ल के अनुसार,फगुआ गायन में सिद्धेश्वर मंदिर की सांस्कृतिक विरासत है। पहले होली पंद्रह दिनों तक मनाई जाती थी, जो अब कुछ दिनों तक ही सीमित हो गई है। फिर भी, ग्रामीण इलाकों में फगुआ गीतों की परंपरा अभी भी जीवंत है। गांवों की चौपालों पर लोग एकत्रित होकर ढोलक और मंजीरे की ताल पर बघेली भाषा में होली के पारंपरिक गीत गाते हैं, जिससे पूरा वातावरण होली पर सिद्धेश्वर मंदिर में बघेली फगुआ गान:सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा बारा प्रयागराज।। यमुनानगर के सिद्धेश्वर मंदिर में होली का त्योहार इस वर्ष जबरदस्त उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। भटपुरा क्षेत्रों में लोग रंग-गुलाल और अबीर से एक-दूसरे को रंग लगाकर शुभकामनाएं दे रहे हैं, वहीं सिद्धेश्वर मंदिर में पारंपरिक फाग गायन की धूम मची हुई। बता दें कि, सिद्धेश्वर मंदिर में फाग गायन या फगुआ की सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा है। आसपास के ग्रामीण इलाकों में फगुआ गीतों की गूंज सुनाई देगी। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर गाए जाने वाले ये गीत यहां की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। स्थानीय भाषा में इन्हें ‘फगुआ’ या ‘फाग’ कहा जाता है।इतिहासकार हनुमान शुक्ल के अनुसार,फगुआ गायन में सिद्धेश्वर मंदिर की सांस्कृतिक विरासत है। पहले होली पंद्रह दिनों तक मनाई जाती थी, जो अब कुछ दिनों तक ही सीमित हो गई है। फिर भी, ग्रामीण इलाकों में फगुआ गीतों की परंपरा अभी भी जीवंत है। गांवों की चौपालों पर लोग एकत्रित होकर ढोलक और मंजीरे की ताल पर बघेली भाषा में होली के पारंपरिक गीत गाते हैं, जिससे पूरा वातावरण भक्तिरस और आनंद से भर जाता है।

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