27 वर्ष मुकदमा लंबित रहने से पुणे न्यायालय में आत्महत्या: 5 करोड़ मुकदमे, 324 वर्षों की प्रतीक्षा
1 min read
सनातन संस्था की प्रेस विज्ञप्ती !
दिनांक : 18.10.2025
27 वर्ष मुकदमा लंबित रहने से पुणे न्यायालय में आत्महत्या: 5 करोड़ मुकदमे, 324 वर्षों की प्रतीक्षा
‘तारीख पे तारीख’ कब तक; नामदेव जाधव को न्याय कब मिलेगा? -. अभय वर्तक, सनातन संस्था
‘तारीख पे तारीख’ के दुष्चक्र में 27 वर्षों तक फंसे रहने के बाद, न्याय की प्रतीक्षा में हताश हुए श्री. नामदेव जाधव ने पुणे न्यायालय की इमारत से कूदकर अपना जीवन समाप्त कर लिया। इसे आत्महत्या नहीं, बल्कि देरी और उदासीनता से ग्रस्त व्यवस्था द्वारा की गई हत्या है । अभी भी देश की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं, जिन्हें निपटाने में नीति आयोग के अनुसार 324 वर्ष लगेंगे, यानी कई पीढ़ियों और करोड़ों लोगों को न्याय मिलेगा ही नहीं। आखिर ‘तारीख पे तारीख’ कब तक चलेगी, नामदेव जाधव को न्याय कब मिलेगा, ऐसा प्रश्न सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. अभय वर्तक ने सरकार से किया है।
वर्तक ने आगे कहा कि , जाधव की मृत्यु तो केवल हिमशैल का एक सिरा है। आज की तारीख में, देशभर की अदालतों में 5.3 करोड़ से अधिक मुकदमों के पहाड़ खड़े हैं। इनमें से सर्वाधिक, यानी 4.7 करोड़ मामले, जिला और तालुका अदालतों में लंबित हैं, जहां आम आदमी न्याय के लिए पहला दरवाजा खटखटाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 1.8 लाख से अधिक मुकदमे 30 वर्षों से अधिक समय से और कुछ तो 50 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा में हैं।
इस न्यायिक विलंब के मूल में प्रशासन की उदासीनता है। भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर केवल 15 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जबकि अमेरिका में यही अनुपात 150 और यूरोप में 220 है। विधि आयोग ने कई दशक पहले प्रति दस लाख पर 50 न्यायाधीशों की सिफारिश की थी; लेकिन हम वह लक्ष्य भी साध्य नहीं कर पाए हैं। अक्टूबर 2025 तक, देशभर के 25 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 26 प्रतिशत और जिला अदालतों में 5,200 से अधिक न्यायाधीशों के पद वर्षों से रिक्त हैं। रिक्त पदों के कारण कार्यरत न्यायाधीशों पर काम का भारी बोझ पड़ता है, जिससे मुकदमे निपटाने की गति धीमी हो जाती है और न्याय मिलने में देरी होती है। न्यायपालिका पर होने वाला खर्च तो देश के कुल जीडीपी का केवल 0.08% है, जो बुनियादी ढांचे के अभाव में स्पष्ट दिखता है।
नागरिकों का न्याय पर से विश्वास न उठे, इसके लिए सरकार को इस समस्या को राष्ट्रीय आपदा मानकर युद्धस्तर पर काम करने की आवश्यकता है। प्रत्येक मुकदमे को एक निश्चित समय-सीमा में निपटाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाकर उसका कठोरता से कार्यान्वयन करना, न्यायाधीशों की संख्या को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बढ़ाना, न्यायाधीशों और अन्य सभी रिक्त पदों को भरना, न्यायिक बुनियादी ढांचे में निवेश करना और प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग करना आवश्यक है। यदि ये सभी कार्य एकत्रित प्रयास के रूप में किए जाएं, तो ‘सभी के लिए समय पर न्याय’ की नीति को प्राप्त किया जा सकता है, ऐसा भी वर्तक ने अंत में कहा।
भवदीय,
अभय वर्तक
प्रवक्ता, सनातन संस्था,
(संपर्क : 99879 22222)