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लक्ष्मीपूजन करने की विधि और महत्व

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सनातन संस्था द्वारा संकलित दीपावली विशेष लेख

दिनांक: 19.10.2025

लक्ष्मीपूजन करने की विधि और महत्व

कार्तिक अमावस्या, अर्थात लक्ष्मीपूजन के दिन सभी मंदिरों, दुकानों तथा घरों में श्री लक्ष्मीपूजन किया जाता है। कार्तिक अमावस्या का यह दिन दीपावली का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सामान्यतः अमावस्या को अशुभ माना गया है; किंतु दीपावली की यह अमावस्या, शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागिरी पूर्णिमा की तरह ही कल्याणकारी और समृद्धि कारक है।
इस दिन लक्ष्मीपूजन के साथ-साथ ‘अलक्ष्मी निःसारण’ भी किया जाता है।
अब जानते हैं कि लक्ष्मीपूजन के दिन की जाने वाली क्रियाओं के पीछे क्या शास्त्र है।

1. इतिहास

लक्ष्मीपूजन के दिन भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी के साथ सभी देवताओं को बलि के कारागार से मुक्त किया, और उसके पश्चात वे सभी देवता क्षीरसागर में जाकर विश्राम करने लगे – ऐसी कथा प्रचलित है।

2. त्योहार मनाने की विधि

लक्ष्मीपूजन के दिन प्रातःकाल मंगल स्नान कर देवपूजा, दोपहर में पार्वण श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन तथा प्रदोषकाल में लता-पल्लवों से सजे मंडप में लक्ष्मी, विष्णु और कुबेर आदि देवताओं की पूजा की जाती है ।

पूजन के समय चौकी पर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल या स्वस्तिक बनाकर उस पर लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। कुछ स्थानों पर कलश पर ताम्बे का पात्र रखकर उस पर लक्ष्मी की मूर्ति रखी जाती है। लक्ष्मी के पास ही कलश पर कुबेर की प्रतिमा रखी जाती है।फिर लक्ष्मी आदि देवताओं को लवंग, इलायची और चीनी मिलाकर बने गाय के दूध के खोवे का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इसके साथ धनिया, गुड़, धान की लावा, बतासे आदि भी अर्पण कर बाद में अपने परिजनों में वितरित करते हैं। इसके पश्चात ब्राह्मणों तथा भूखों को भोजन कराया जाता है। रात में जागरण किया जाता है।

यदि लक्ष्मीपूजन के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, तो जो भी सामग्री उपलब्ध हो, भक्तिभावपूर्वक पूजा करनी चाहिए। बताशे आदि न मिलने पर घर के घी-चीनी या कोई मीठा पदार्थ नैवेद्य रूप में अर्पित किया जा सकता है।

लक्ष्मी किनके घर वास करती हैं ?

कार्तिक अमावस्या की रात लोग जागरण करते हैं। पुराणों में कहा गया है कि इस रात लक्ष्मी संपूर्ण पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने निवास के लिए उपयुक्त स्थान खोजती हैं। जहाँ स्वच्छता, सौंदर्य और सुसज्जा होती है, वहां वह आकर्षित होती हैं; साथ ही जहां घर में चरित्रवान, कर्तव्यनिष्ठ, संयमी, धर्मनिष्ठ, ईश्वरभक्त, क्षमाशील पुरुष तथा गुणवती, पतिव्र स्त्रियां रहती हैं — ऐसे घरों में लक्ष्मी निवास करना पसंद करती हैं।

3. लक्ष्मीपूजन दिवस का महत्व

सामान्यतः अमावस्या को अशुभ कहा गया है; किंतु यह अमावस्या अपवाद है। यह दिन शुभ माना जाता है; किंतु सभी कार्यों के लिए नहीं। इसलिए इस दिन को ‘शुभ’ के बजाय ‘आनंददायक दिन’ कहना अधिक उचित है।

4. लक्ष्मीदेवी से की जाने वाली प्रार्थना

लेखा-बही (जमा-खर्च की) लक्ष्मी के सामने रखकर यह प्रार्थना की जाती है —
“हे माता लक्ष्मी ! आपके आशीर्वाद से प्राप्त धन का उपयोग हमने सत्कार्य और ईश्वरीय कार्यों में किया है। उसका पूरा लेखा-जोखा आपके समक्ष प्रस्तुत है। इस पर आपकी स्वीकृति बनी रहे। आपसे कुछ भी छिपा नहीं है। यदि मैंने आपके धन का दुरुपयोग किया, तो आप मुझसे दूर चली जाएंगी — यह मैं सदैव जानता हूं । अतः हे लक्ष्मीदेवी ! मेरे खर्च को सहमति देने के लिए भगवान से मेरे लिए अनुरोध करें, क्योंकि आपके अनुरोध के बिना वह उसे स्वीकार नहीं करेंगे। आगामी वर्ष भी हमारा कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो।”

5. लक्ष्मीपूजन की रात को कचरा क्यों निकाला जाता है ?

अलक्ष्मी निःसारण (अशुभता या दरिद्रता का निवारण)

महत्व :
यदि गुण उत्पन्न हुए और दोष नष्ट न हुए, तो गुणों का मूल्य नहीं रहता।अतः लक्ष्मीप्राप्ति के साथ अलक्ष्मी का नाश भी आवश्यक है। इसी कारण इस दिन नई झाड़ू खरीदी जाती है, जिसे ‘लक्ष्मी’ कहा जाता है।

विधि :
रात के मध्य में नई झाड़ू से घर की सफाई कर कचरा टोकरी में भरकर बाहर फेंकना चाहिए। इसे ‘अलक्ष्मी निःसारण’ कहा जाता है। अन्य दिनों में रात को झाड़ू लगाना या कचरा फेंकना वर्जित है ; परंतु केवल इस रात ऐसा किया जाता है।
कचरा निकालते समय सूप और दमड़ी (छोटी थाली) बजाकर अलक्ष्मी को भगाया जाता है।

6. लक्ष्मी की पूजा में अक्षतों का अष्टदल कमल या स्वस्तिक क्यों बनाते हैं ?

लक्ष्मीपूजन के समय अक्षत (चावल) से बनाए गए अष्टदल कमल या स्वस्तिक पर ही श्री लक्ष्मी की स्थापना की जाती है। सभी देवताओं की पूजा में उन्हें अक्षत का आसन दिया जाता है। अन्य देवताओं की तुलना में अक्षत में श्री लक्ष्मी का तत्व 5% अधिक मात्रा में आकर्षित होता है, क्योंकि अक्षत में लक्ष्मी की सगुण-संपन्नता की तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता होती है। अक्षत में तारक और मारक तरंगों को ग्रहण कर फैलाने की शक्ति होती है, इसलिए लक्ष्मी की पूजा में अष्टदल कमल या स्वस्तिक बनाया जाता है। स्वस्तिक में निर्गुण तत्व जागृत करने की क्षमता होती है, अतः लक्ष्मी के आसन के रूप में स्वस्तिक बनाना चाहिए।

7. लक्ष्मी को ‘चंचला’ (अस्थिर) क्यों कहा जाता है ?

जब कोई देवता की उपासना करता है, तो उस देवता का तत्व उपासक के पास आता है, और उसके अनुरूप फल या लक्षण प्रकट होते हैं। उदाहरणार्थ — लक्ष्मी की उपासना से धनप्राप्ति होती है। परंतु जब उपासना घटती है, अहंकार बढ़ता है, तो देवता का तत्व उपासक से दूर हो जाता है। इसी कारण कहा जाता है कि लक्ष्मी व्यक्ति को छोड़ देती हैं। परंतु व्यक्ति अपनी गलती स्वीकारने के स्थान पर कहता है — “लक्ष्मी चंचल है।”

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि —
यदि लक्ष्मी सचमुच चंचला होतीं, तो उन्होंने विष्णु के चरण कभी के छोड़ दिए होते। – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

संदर्भ: सनातन संस्था का ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’

आपकी नम्र,
प्राची जुवेकर
सनातन संस्था
संपर्क -7985753094

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