तीसरी आंख : आध्यात्मिक रोड-शो पर।
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तीसरी आंख : आध्यात्मिक रोड-शो पर
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‘मैं ही दुर्गा, मैं काली हूं, मुझे मत मारो..’ की आकाशवाणी
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पंचमी भरत मिलाप कमेटी का निकला जुलूस
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मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के भाई के रोड-शो में अब पड़ने लगी है महंगाई की मार!
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सत्ताधीशों के रोड-शो में टनों फूलों से टनाटन होता काफिला
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आध्यात्मिक रोड-शो से धर्म की जानकारियां बढ़ती हैं तो राजनीतिक रोड-शो से सांसारिक लाभार्जन होता है
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मिर्जापुर। यूपी के अयोध्या जिले में ही नहीं बल्कि देश के अन्यान्य जिलों में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के लिए *’जान-न्यौछावर’* करने वालों की लंबी तादाद मिल जाएगी लेकिन मां विन्ध्यवासिनी के अंचल में वनवास जाने के पहले और लंका-फतह के बाद पितृ-तर्पण के लिए आए श्रीराम के भाई भरत जी के रोड-शो (भरत-मिलाप जुलूस) में सहयोग की कमी के चलते जो भी भरत-मिलाप जुलूस निकल रहे हैं, उन सभी जुलूसों में शूर्पणखा स्वरूपा मंहगाई डायन का असर दिख रहा है। यही कारण है कि इन जुलूसों में सजने वाली चौकियों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है।
सहयोग राशि से निकलते हैं ये जुलूस
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नगर में विजयादशमी के बाद आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को गणेशगंज का, कार्तिक कृष्ण पंचमी को चौबेटोला का पुरानी दशमी, सप्तमी का त्रिमोहानी, कार्तिक शुक्ल, द्वितीया का कसरहट्टी का भैयादूज एवं कार्तिक शुक्ल एकादशी का तिवराने टोला का भरत-मिलाप जुलूस लंबे अरसे से निकल रहा है। इसमें तिवराने टोला का लगभग 40 साल के अलावा शेष तो सौ साल से ऊपर के जुलूस हैं। जबकि बल्ली के अड्डा का जुलूस तकरीबन 25 सालों से बंद हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तरह के जुलूस विजयादशमी के बाद निकलते चले आ रहे हैं लेकिन महंगाई के भाव को मूंछ पर ताव देने से इन जुलूसों के उत्साह में कमी आती दिख रही है।
चन्दा का स्वरूप जस का तस
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50 साल पहले जो 2/- रुपए चन्दा देता चला आ रहा वह बड़ी मशक्कत से 5/- और ज्यादा विनती-आरजू से 11/- रुपए से अधिक देने को तैयार नहीं है। जबकि चौकियों और जगह-जगह सजावट के लिए लगने वाले झालरों तथा गेट बनवाने की लागत अंतरिक्ष उड़ान भरने वाले वैज्ञानिकों की तरह आसमान की ओर बढ़ रही है। चन्दा देने वालों की भी दलील सही है कि पहले तो सिर्फ यही जुलूस निकलते थे जबकि अब हर मुहल्ले, हर गली में दुर्गाजी के भक्त जन्म लेकर पूजा पंडाल बना रहे हैं। ये भी उन्हीं दुकानों/प्रतिष्ठानों में दस्तक दे रहे हैं जहाँ भरत मिलाप जुलूस वाले दस्तक देते थे। तिवराने टोला को छोड़कर अन्य भरत-मिलाप के आयोजकों में कुछ के पास दुकान, फील्ड, चौकियों का किराया तथा विविध अवसरों पर मिष्ठान्न की लगने वाली दुकानों की कमाई हो जाती है वरना जो जुलूस निकल रहे हैं, वे भी नहीं निकल पाते।
सामान्य लोगों के हाथ में है तीर कमान
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तीर-कमानधारी मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम के जरिए सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सन्देश देने वाले इन जुलूसों की कमान निकलने वाले मुहल्लों के सामान्य लोगों के ही हाथों में होती है । वरना अयोध्या में रामजन्म भूमि के लिए जब नामी-गिरामी लोग रसीद लेकर उतरे थे तो लक्ष्मी के रूप में इतने रुपए बरसा कि स्टेट बैंक में खाता खोलना पड़ा । भरत मिलाप के लिए 11/- रुपए देने वालों ने 11 हजार तक खुद को खुशी खुशी प्रदर्शित करते हुए दिया। खुश थे या नहीं, यह तो उनका ही दिल जाने, पर बड़े-बड़े लोगों को द्वार पर देखकर राजा बलि की तरह तीनों लोक दान में दे देने का वचन जरूर दे रहे थे।
पंचमी का भरत-मिलाप निकला
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आर्थिक किल्लतों के बीच पंचमी का भरत-मिलाप जुलूस 14 अक्टूबर की मध्यरात्रि निकला जो 15 अक्टूबर को सुबह तक शहर में घूमता रहा। गैरजिले के विमानों को देखने के लिए लोग लालायित थे।
दुर्गा और काली हुईं प्रकट
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पंचमी भरत मिलाप में सामाजिक विकृतियों पर लगाम के लिए सजे लाग पर एक नन्हीं बालिका *’मुझे मत मारो’* की पुकार कर रही थी। उसी विमान पर स्पीकर के जरिए आकाशवाणी भी हो रही थी कि ‘मैं ही दुर्गा, मैं काली हूं, मुझे मारो’।’ कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ सजी चौकी देख महिला वर्ग रीझ गया। इसी के साथ दुर्गा जी के नृत्य और हनुमान जी का सड़क पर नृत्य तथा आग की लपटों के साथ पैदल चलते कलाकार को खूब सराहा गया। माता सीता की पृथ्वी में समाधि झांकी में टेकनोलॉजी का भरपूर प्रयोग किया गया था। कोरोनकाल में बंद भरतमिलाप जुलूस में आयोजन कमेटी ने पुनर्जीवन के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी ।जुलूस का नेतृत्व भोला मोदनवाल और ज्ञानशंकर गुप्त बखूबी कर रहे थे।
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सलिल पांडेय, मिर्जापुर।