अमृत-योजना की सार्थकता तभी जब मृत योजना भी लॉन्च हो।
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तीसरी आंख
अमृत-योजना की सार्थकता तभी जब मृत योजना भी लॉन्च हो।
ए भाय, जरा देख के चलो, सम्हल के चलो/आगे भी-पीछे भी/गड्ढा मिल सकता है/ नौजवान क्या बुड्ढा भी गिर सकता है/बच्चा क्या छः फुटा भी समा सकता है/इसीलिए तो कहता हूं मेरे यारो-प्यारो/हाई पावर चश्मा नहीं दूरबीन वगैरह ले के चलो।
मिर्जापुर। ये फिल्मी पिरोडी इसलिए ताज़ा-तरीन है क्योंकि फिल्मों में किसी हीरो को जब कलाबाजी का कोई रोल दिया जाता है तो उछलकूद के लिए पहाड़ का इंतज़ाम करना पड़ता ही है, साथ ही गड्ढे का भी इंतज़ाम फ़िल्म-निर्माता को करना पड़ता है ताकि हीरो बड़ी ऊंचाई पर चढ़ जाए और कोमल-सी हीरोइन उतनी ऊंचाई न चढ़ सके, आरजू-मिन्नत में यह डायलॉग बोले कि ‘मेरे प्राण-प्यारे, यदि तुम ऊपर की ओर छलांग लगा कर पहाड़ पर जा सकते हो तो मैं भी गड्ढे में छलांग लगा कर कूद जाऊंगी और विलेन मिट्टी डालकर पाट देगा तब तुम खलनायिका के सहारे ही जीना।
सो, जिले में पहाड़ भी है और गड्ढा भी
फ़िल्म-जगत की मायानगरी में जब पहाड़ और गड्ढे हैं तो महामाया की नगरी में भी दोनों स्पॉट उपलब्ध है। सिर्फ बॉलीवुड को विंध्यवुड नाम देने की जरुरत है। सो, सुपर-डूपर फ़िल्म यहाँ भी निर्मित हो सकती है।
हर शब्दों के विलोम शब्द होते हैं
अध्यात्म जगत में द्वैत और सांसारिक जगत में दुनियां के लिए कहा ही गया कि यह ‘दो’ वाली दुनियां है। ‘अच्छा’ शब्द का विलोम ‘बुरा’ शब्द उसका साथ निभाता है। ईमानदार हैं तो बेईमान भी हैं। हां ईमानदार, हाईलोजन बल्ब की रोशनी में मिलेंगे और बेईमान तो अँधरे के शौकीन होते ही हैं। सिर्फ राजनीतिक दलों में दो नहीं चलता। इसमें कब कितने आपस में गोलिया जाएंगे और कब छिटक जाएंगे, कहा नहीं जा सकता।
अमृत का विलोम मृत
जिले में जलांजलि के लिए ‘अमृत योजना’ लागू है। गांव में भी नगर में भी। अमृत के पहले मृत शब्द का महत्व है। मृत को ही घूंटी पिलाकर अमृत करना पड़ता है। सरकार ने ‘अमृत योजना’ लागू की। इसमें शहर खोदा जा रहा है। अमृत शब्द की महत्ता के लिए सड़कों को खोदकर छोड़ दिया जा रहा है ताकि इसमें कुछ गिरे ही नहीं बल्कि गड्ढे के सदा-सदा के प्यारे हो जाएं तब अमृत का महत्व समझ में आएगा। चोर-गिरहकट न रहें तो पुलिस की क्या उपयोगिता। डेंगू-कोरोना से रोना-रोना न होने लगे तो नीम-हकीम, डॉक्टर-वैद की क्या जरूरत
इसीलिए तो संकट-मोचन इलाका मृत योजना के लिए परफेक्ट समझा गया
नगर के संकट-मोचन का इलाका हनुमान जी मंदिर के लिए विख्यात है। इस इलाके में यदि संकट नहीं खड़ा किया गया तो पूरी रामकथा झूठी हो जाएगी। हनुमान जी जब लंका चले थे तो देवताओं ने सिंहिका, सुरसा, लंकिनी आदि व्यवधान के गड्ढे खोद दिए थे। इसीलिए नामी जनरल स्टोर ‘संजय स्टोर’ के पास तकरीबन 6 फीट लंबा और 5 फीट चौड़ा तथा इतना ही गहरा गड्ढा विगत 4-5 दिनों से खोद कर छोड़ दिया गया। प्रायः सड़कों की खुदाई के वक्त गड्ढ़ों को चारों तरफ से बांस-बल्ली लागाकर घेर दिया जाता है लेकिन लगता है कि यह पुराने जमाने की इंजीनियरिंग है। विश्वेश्वरैया वाली इंजीनियरिंग। अब रूपयेश्वर वाली इंजीनियरिंग के जमाने में रिस्क लेकर हनुमान जी बनाने का दौर है। हनुमानजी भी लक्ष्मी-स्वरूपा सीताजी की खोज में निकले थे लिहाजा आधुनिक युग के निर्माता भी लक्ष्मी की तलाश में हैं तो कोई बात नहीं।
ई रिक्शा वाला समाहित हो गया
शनिवार, 26/11 को एक ई रिक्शावाला मय सवारी इसमें समाहित हो गया था। एक दो लोग होते तो गड्ढा शरण दे देता अपनी गोद में। कई सवारी थी लिहाजा गड्ढा सुख नसीब नहीं हो सका।