कर्म के संग भक्ति जुड़ सकती है,भाग्य नहीं
1 min read
कर्म के संग भक्ति जुड़ सकती है,भाग्य नहीं
संजीत कुमार की खास रिपोर्ट लालापुर प्रयागराज
लालापुर- प्रयागराज।पंचदिवसीय रामकथा में कथा व्यास श्री काशी नरेशाचार्य जी महाराज ने आज अंतिम दिवस कर्म और भाग्य की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि परमात्मा उन्हीं की सहायता करता है ,जो अपनी सहायता स्वयं करता है। यह कर्म की पराकाष्ठा है। जो केवल भाग्यवादी होते हैं वह अक्सर अकर्मण्य होते हैं। करना कुछ नहीं चाहते और भाग्य पर निर्भर रहते हैं। अपनी चारों तरफ कर्मशून्यता का चक्र रेखा खींच लेते हैं। ऐसे लोग असमर्थ और मन से टूटे हुये लोग होते हैं। किन्तु जिन्होनें द्रौपदी को जाना, सुग्रीव को जाना, केवट को जाना, सुदामा को जाना, कबीर और नानक को जाना, श्री कृष्ण और श्री राम को जाना ,वो भाग्यवादी नहीं, अपितु कर्मवादी हुये। कर्म के संग भक्ति जुड़ सकती है,भाग्य नहीं। अपने को स्वयं बनाओ। कर्म में लीन होकर भी परमात्मा एवं गुरु के प्रति भक्ति सदैव बनी रहे,ताकि तुम्हें कर्म का अहंकार न हो सके।पीठासीन कथावाचक विवेक कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने बताया कि जब कर्म करोगे और साथ मे ईश्वर एवं गुरु पर भरोसा भी रखोगे तभी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगा। तुम सदैव शांतिपूर्वक आनन्दमय जीवन व्यतीत करोगे। परमात्मा तभी सहायता करेगा ,जब तुम स्वयं उचित प्रयास लीन होकर करोगे।कथा आयोजकों में मुन्नीलाल शर्मा एवं रोशनलाल शर्मा जी ने सभी पधारे हुए भक्तों का आभार जताया।
इस दौरान कथा सुनने वालों में श्री शांतिस्वरूप जी मिश्रा, काशी प्रसाद जी त्रिपाठी, सुमन्त जी भार्गव,महेश प्रसाद त्रिपाठी, बहादुर शर्मा जी,राकेश जी कुशवाहा, सुबेदार कुशवाहा जी,हर्षलाल द्विवेदी जी,राकेश मिश्रा पयासी जी,राजकुमार केसरवानी जी,सुरेश केसरवानी,शिवकेश शर्मा जी,विधायक चौहान जी,रामप्रताप चौहान जी सहित सैकड़ों महिलाओं सहित भक्तजनों की भारी संख्या उपस्थित रही।मंच संचालन हरिकेशानंद जी महाराज ने किया