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श्राद्ध विधि केवल कर्मकांड नहीं बल्कि धर्म विज्ञान

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_*सनातन संस्था का लेख*_
दिनांक : 19.09.2022

*श्राद्ध विधि केवल कर्मकांड नहीं बल्कि धर्म विज्ञान* 

हिंदू धर्म को विश्व गुरु कहा जाता है । हिंदू धर्म के सिद्धान्तों को चिंतन तथा वैश्विक सिद्धांत माना जाता है । विश्वकल्याण, विश्व शांति, ‘वसुधैव कुटुंबकम’, ‘सर्वेपि सुखिनः सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयः’ आदि हमारे धर्म के विचार भी अखिल मानव जाति  के उद्धार के लिए है, न कि केवल हिन्दू समाज के उन्नति के लिए ! हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई । धर्मशास्त्र का जो पालन करेगा, उसे उसका निश्चित ही लाभ होगा । जो नहीं करेगा, उसकी हानि होगी । जिस प्रकार जो दवाई लेगा, उसे पंथ, मत, मजहब के भेद के बिना लाभ होगा, वैसे ही हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार कृति करने से सभी को लाभ होता है ।

आज विदेशों में अधिकतर लोग मानसिक बीमारियों से ग्रस्त है । अमेरिका में ही 5 मे से 1 व्यक्ति को मानसिक बीमारी है । भारत जैसे विकासशील देश की अपेक्षा अमेरिका जैसे प्रगत देश मे यह समस्या इतनी विशाल मात्रा में बढी हुई है, तो इसका अध्ययन क्यों नही हो रहा है ? भौतिक सुख की अपेक्षा मानसिक सुख तथा शांति इनका महत्त्व होता है । केवल भौतिक प्रगति देखने से मानसिक समस्याओं का समाधान नही मिलता है । इसी कारण “गया जी” में अनेक विदेशी, श्राद्ध के लिए आते है । क्योंकि आधुनिक विज्ञान तथा भौतिक प्रगति उनको राहत नहीं दे पा रही है ।

जिस प्रकार हॉलीवुड अभिनेता सिल्वेस्टर स्टैलोन ने भारत में अपने पुत्र का पिंडदान किया, उसी प्रकार रशिया के दिवंगत वामपंथी नेता के लिए तर्पण करने का उदाहरण हमारे सामने है, मार्च 2010 में रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की धुर विरोधी रहीं रूसी नेता साझी उमालातोवा ने येल्तसिन की आत्मा की शांति के लिए भारत में तर्पण और पिंडदान किया था । उमालातोवा रूस की पूर्व सांसद हैं और ‘पार्टी ऑफ पीस एंड यूनिटी’ की संस्थापक अध्यक्ष रही हैं। वो कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़ी नेता रही हैं । वह गोर्बाचेव और येल्तसिन की कट्टर विरोधी थीं और सोवियत संघ के विघटन की सख्त विरोधक थीं । सोवियत विघटन की बात को लेकर इनके बीच तीखे विवाद भी हुए थे।

उमालातोवा का कहना था कि, येल्तसिन बार-बार मेरे सपने में आते हैं और राजनीतिक मुद्दों पर बहस करते हैं । कभी वो अपने विचारों के लिए अपराध बोध से ग्रस्त लगते हैं और दुखी लगते हैं। ऐसा लगता है कि येल्तसिन की आत्मा असंतुष्ट और अशांत है । उन्होंने अपने इस सपने की चर्चा हरिद्वार स्थित देव-संस्कृती विश्वविद्यालय के विदेश प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. ज्ञानेश्वर मिश्र से की और इच्छा जताई कि वो येल्तसिन की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ और तर्पण करना चाहती हैं । डॉ. ज्ञानेश्वर मिश्र ने बताया, हालांकि उमालातोवा विदेशी हैं, फिर भी उनकी भावना को देखते हुए उनके लिए तर्पण और श्राद्ध संस्कार का आयोजन करना हमारा कर्तव्य बनता था । उनके इच्छा के अनुसार हरिद्वार में पंडित उदय मिश्र और शिवप्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में उन्होंने ये संस्कार कराए थे । वहां पर येल्तसिन के लिए तर्पण करने के अलावा उन्होंने अपने माता-पिता और अफगानिस्तान में मारे गए अपने दो भाइयों के लिए भी यज्ञ और पिंडदान किया और शांति की कामना की थी । उसके उपरांत उमालातोवा का कहना था, श्राद्ध-तर्पण करने के बाद से मै काफी सहज महसूस कर रही हूं। लगता है कि मेरे ऊपर कोई ऋण था, जो उतर गया है । इसके बाद उमालातोवा भारतीय संस्कृति और विचारों से इतनी प्रभावित हुई हैं कि उन्होंने वैदिक धर्म में दीक्षा लेने का निर्णय लिया ।

भारत में श्राद्ध आदि विधियों का अनेक लोग मजाक उडाते है । उन्हे वह अंधविश्वास लगता है । विदेशी लोग आधुनिकता की और जा रहे है और भारत इन सभी कारणों से पिछडा हुआ है, ऐसा उनका तर्क रहता है । लेकिन इसके विपरीत विदेशों में भी पितरों के विषय में बहुत कुछ किया जाता है। इस सम्बन्ध में ईसाई पंथ के साथ साथ यूरोप, लैटिन अमेरिका तथा अमेरिका में भी रूढ़ियाँ प्रचलित हैं। 

*बेल्जियम* में 2 नवंबर को ‘ऑल सोल्स डे’ के दिन छुट्टी ना होने के कारण इसके पहले दिन अर्थात ‘ऑल सेंट्स दिन’ को दफन भूमि में जाकर मृतक की कब्र पर एक दीपक जलाया जाता है और उन्हे प्रार्थना की जाती है ।

*पुर्तगाल* में भी 2 नवंबर को पूरा परिवार दफन भूमि में जाकर प्रार्थना करता है । इसके अलावा शाम को बच्चे एकत्रित होकर अपने अपने क्षेत्र में घरों के प्रवेशद्वारों पर जाकर खडे होते है । वहां उन्हें केक और मिठाइयां दी जाती हैं।

*जर्मनी* में कब्रों की पुताई की जाती है, जमीन परकोयला बिछा कर उस पर लाल रंग से चित्र बनाए जाते हैं और फूल-कलियों की मालाओं सेउन कब्रों को आच्छादित किया जाता है। उसके उपरांत सभी मिलकर प्रार्थना करते है । ऑस्ट्रियामें पूर्वजों को प्रार्थना के साथ उनके लिए ‘स्ट्रिट्झेल’ नाम का ब्रेड का केकबनाया जाता है ।

*फ्रान्स* में गिरजाघर की रात्रिकालीन प्रार्थना के समापन पर पितरों के संबंध मेंचर्चा की जाती है । तदुपरान्त लोग सोने के लिए चले जाते हैं । थोडी देर के बादव्यवसायी  वादकों के द्वारा वाद्य बजाकर सभी को जगाया जाता है और वेमृतात्माओं की ओर से उनको आशीर्वाद देते हैं । इस वादक दल के मुखिया को खाद्य सामग्रीअर्पित की जाती है ।   मैक्सिको में इसे ‘डे ऑफ द डेड’ अर्थात मृतकों कादिन इस नाम से जाना जाता है। 1 नवंबर को शैशवावस्था में जो मृत हुए है उनके लिए और2 नवंबर को मरने वाले बुजुर्गों के लिए प्रार्थना की जाती है ।

*ग्वाटेमाला* में इस दिन, ‘फिएम्ब्रे’ नामक पदार्थ को मांस और सब्जियों से बनायाजाता है और मृतकों की कब्रों पर रखा जाता है। साथ ही इस दिन पतंगबाजी का भी विशेषत्यौहार होता है। इन पतंगों को मृतकों के साथ संबंध के प्रतीक के रूप में प्रवाहितकिया जाता है। 

इसी प्रकार जापान में, इसे ‘बॉन फेस्टिवल’ के रूप में जाना जाता है। यह त्योहार हर साल 8 अगस्त से 7 सितंबर तक तीन दिनों के लिए मनाया जाता है । म्यांमार (बर्मा) में जापान के सर्वथा उलटे तरीके से यह आनंद की जगह शोक समारोह के रूप में मनाया जाता है । यह त्योहार अगस्त मास के अन्त या सितम्बर के प्रारंभ में मनाया जाता है । चीन में हान परंपरा के अनुसार, पूर्वजों को मनाने के लिए ‘क्विंगमिंग’ या ‘चिंग मिंग’ पिछले 2500 वर्षों से मनाया जा रहा है। यह त्योहार ताइवान, मलेशिया, हांगकांग, सिंगापुर और इंडोनेशिया में भी मनाया जाता है।कंबोडिया में बौद्ध परंपरा में, ‘पचूम बेन’ (Pchum Ben) को पूर्वज दिवस (एन्सेस्टर्स डे) के रूप में भी जाना जाता है। यह कंबोडिया में सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक समारोह है। यह अनुष्ठान ख्मेर परंपरा कैलेंडर के दसवें महीने के पंद्रहवें दिन किया जाता है। यह अनुष्ठान 23 सितंबर से 12 अक्टूबर तक किया जाता है। श्रीलंका में  बौद्ध परंपरा के अनुसार, सातवें दिन, व्यक्ति की मृत्यु के तीन महीने बाद और वर्षपूर्ती के दिन मृतक को भोजन दान किया जाता है। फिलीपींस में यह त्योहार 19 फरवरी को मनाया जाता है। 

*यूरोप तथा एशिया* के अन्य देशों के उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक स्थान पर पूर्वजों का महत्त्व है तथा सभी स्थानों पर यह कालावधि अगस्त महीने से नवंबर की कालावधि में होता है तथा भारत में भी पितृ पक्ष का आश्विन मास लगभग इसी काल में आता है । इससे स्पष्ट होता है कि हिंदू धर्मशास्त्र में बताए गये प्रत्येक आध्यात्मिक कृति का महत्व है तथा इसे करने से सभी को लाभ होता है 

आपका  विनम्र

*श्री. गुरुराज प्रभु*
सनातन संस्था
*संपर्क* – 9336287971

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