September 23, 2025 22:11:50

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श्री दुर्गा देवी की उपासना

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श्री दुर्गा देवी की उपासना

प्रस्तावना – जब अपनी उपास्य देवी के गुण तथा उसकी उपासना से संबंधित आध्यात्मिक जानकारी ज्ञात होती है, तो देवी के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है। इससे साधना अच्छी होने में सहायता मिलती है। इसी उद्देश्य से इस लेख में श्री दुर्गा देवी के कुछ विशेष गुण तथा उसकी उपासना से संबंधित उपयोगी आध्यात्मिक जानकारी दी गई है।
श्लोक
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
अर्थ :
हे नारायणी देवी! आप सब मंगलों की मंगलस्वरूप हैं, स्वयं कल्याणकारी शिवस्वरूप हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को प्रदान करनेवाली हैं, शरण देने योग्य हैं, त्रिनेत्रवाली हैं । आपको मेरा नमस्कार है।

भक्तों की पुकार पर दौड़कर आनेवाली देवी !
सर्वस्वरूपिणी, विश्वस्वामिनी और सर्वशक्तिशाली ऐसी माता जगदंबा ने कार्यानुसार श्री महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के विभिन्न रूप धारण किए। शरणागत को तुरंत स्वीकार करनेवाली, मंगल प्रदान करनेवाली, जीवन को परिपूर्ण बनानेवाली प्रत्येक तत्व का प्रतीक और भक्तों की पुकार पर तुरंत प्रकट होनेवाली, ऐसी ही माता जगदंबा की ख्याति है। असंख्य भक्तों को इसका अनुभव हुआ है।

देवी की पूजा कैसे करें?
देवी के किसी भी रूप की पूजा करते समय उसे अनामिका (करंगली के पास की उंगली) से चंदन लगाएं।
देवी को हल्दी-कुंकुम अर्पित करते समय पहले हल्दी और बाद में कुंकूम, दाएँ हाथ के अंगूठे और अनामिका की चिमटी में लेकर देवी के चरणों पर चढ़ाएं।
अंगूठा और अनामिका से बननेवाले मुद्रा से उपासक के शरीर का अनाहतचक्र जागृत होता है और भक्ति-भाव बढ़ता है।

देवी के विभिन्न रूपों को कौन से फूल अर्पित करें?
विशिष्ट देवता को विशिष्ट गंधवाले फूल, विशिष्ट संख्या में अर्पित करने से उस देवता का तत्त्व शीघ्र आकर्षित होता है।

श्री दुर्गादेवी – मोगरा
श्री लक्ष्मीदेवी – कमल, गेंदे का फूल
श्री रेणुकादेवी – बकुल
श्री भवानीदेवी – भुमिकमल
श्री सप्तशृंगीदेवी – कवठी चंपा
श्री योगेश्वरीदेवी – सोनचाफा

फूल नौ या नौ के गुणांक में और वर्तुलाकार में होने चाहिए। वर्तुल का मध्य भाग रिक्त रहना चाहिए। देवी को इत्र अर्पित करते समय मोगरे का इत्र होना चाहिए।

देवी को अगरबत्ती कौन सी चढ़ानी चाहिए?
चंदन, मोगरा, केवड़ा, चंपा, चमेली, जूही, वला, रातरानी और अंबर इन गंधों की ओर देवी का तत्त्व शीघ्र आकर्षित होता है।

अगरबत्ती से देवी को आरती करने की विधि :
भक्ति के प्रारंभिक चरण में (द्वैत अवस्था) दो अगरबत्तियों से आरती करनी चाहिए। आगे के चरण में (अद्वैत भाव की ओर जाते हुए) एक अगरबत्ती से आरती करनी चाहिए। आरती करते समय अगरबत्ती दाएँ हाथ की तर्जनी और अंगूठे से पकड़कर घड़ी की दिशा में तीन बार घुमानी चाहिए।

देवी को कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
देवी की परिक्रमा सदैव विषम संख्या (1, 3, 5, 7) में करनी चाहिए। प्रत्येक परिक्रमा के बाद देवी को नमस्कार करना चाहिए।

देवी को कुंकुमार्चन करना
देवी की उपासना में एक विशेष विधि है ‘कुंकुमार्चन’। देवी का नामजप करते हुए एक-एक चुटकी कुमकुम (सिंदूर) चरणों से लेकर मस्तक तक अर्पित करना अथवा कुमकुम से स्नान कराना ही ‘कुंकुमार्चन’ है।
कुमकुम शक्ति का प्रतीक है। इसमें देवीतत्त्व ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। इस कारण देवी की मूर्ति का शक्तितत्व कुमकुम में आ जाता है और भक्त इसे लगाकर देवी की शक्ति प्राप्त करता है।

आंचल भरना
देवी माँ का आंचल लाल रंग का वस्त्र और साड़ी से भरना चाहिए, क्योंकि लाल रंग में शक्तितत्त्व आकर्षित करने की क्षमता सबसे अधिक होती है।
नौ गज कबसाड़ी अर्पण करना श्रेष्ठ है, क्योंकि यह दुर्गादेवी के नौ रूपों का प्रतीक है। इसे अर्पित करने से देवी को उसके नौ रूपों के साथ प्रकट होकर कार्य करने का आवाहन किया जाता है।

देवी को सूती या रेशमी साड़ी अर्पित करने का महत्व
सूती या रेशमी धागों में सात्त्विक तरंगें ग्रहण और संचित करने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए देवी को भेंट चढ़ाते समय उसे सूती या रेशमी साड़ी अर्पण करनी चाहिए। नारियल शुभसूचक है, उसे भी अर्पण करना चाहिए।

देवी का आंचल कैसे भरें?
थाली में साड़ी रखकर उस पर वस्त्र और फिर नारियल रखें। दोनों हाथों में लेकर, नारियल की शिखा देवी की ओर रखते हुए, छाती के सामने खड़े होकर भावपूर्वक प्रार्थना करें और साड़ी, वस्त्र और नारियल देवी के चरणों में अर्पित करें। इससे नारियल की शिखा की ओर देवी का तत्त्व आकृष्ट होकर साड़ी और कपड़े में संचारित होता है।

देवी के चरणों पर अर्पित वस्त्र पहनने का लाभ
आंचल भरने के बाद देवी के चरणों पर अर्पित वस्त्र प्रसादस्वरूप धारण करें और नारियल प्रसादस्वरूप ग्रहण करें। ऐसा करने से शरीर के चारों ओर संरक्षण कवच बनता है और शरीर की शुद्धि होती है। जितना अधिक भाव होगा, उतना अधिक समय तक सात्त्विकता बनी रहेगी।

संदर्भ : सनातन-निर्मित लघुग्रंथ ‘देवीपूजन का शास्त्र’

आपकी नम्र,
प्राची जुवेकर
सनातन संस्था
संपर्क -7985753094

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