झोला छाप डॉक्टरो की भरमार, ज़िम्मेदार है लाचार,आम आदमी लूट रहा है सरे बाज़ार।
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झोला छाप डॉक्टरो की भरमार, ज़िम्मेदार है लाचार,आम आदमी लूट रहा है सरे बाज़ार।
रिपोर्ट संदीप कुमार
शहर हो या गांव लूट के पसरे है पांव।
कलयुगी डॉक्टर साहब आप सचमुच में महान है क्योंकि हुक्मरान मेहरबान हैं नहीं तो आपकी जमीर भी जिंदा रहती और इलाज भी…
झोला भारतीय संस्कृति और समाज में बहुत खूबसूरत लहजे में नाम लिया जाता है वैध जी निस्वार्थ और इंसानी रिश्तो को बचाने के लिए आधी रात को भी अपने झोला में दवाइयों का पोटली के साथ दूर तक उपस्थित हो जाते थे और फिर झोली का महत्व और बढ़ जाता जब उनके द्वारा दिए गए दवा से मजबूर लाचार असहाय बीमार स्वस्थ होकर वैध जी का आशीर्वाद लेता वह समय कुछ और था जब डॉक्टर को भगवान का दर्जा देकर लोग समाज में अपना पीढा भी दे देते थे लेकिन आज यह डॉक्टर भगवान के रूप में शैतान बनकर लोगों को पैसे के लिए जेबकतरा का कार्य कर रहे हैं ! और इंसान को उसकी कोई कीमत और कदर ना करते हुए अपना शिकार बना रहे हैं ! आज का झोला छाप डॉक्टर प्रारंभिक तौर पर उल्टी-दस्त, खांसी, सर्दी और पेटदर्द आदि की दवाएं रख जटिल से जटिल ईलाज चुटकी में कर देते हैं.. कारण होने वाली आय ना की स्वस्थ खुशहाल जीवन देने के लिए…!
*नॉर्मल बीमारियां आमतौर से सभी को होती हैं और डॉक्टर की मदद के बिना ही ठीक हो जाती हैं*…..
डॉक्टरी के दौरान प्रायः ऐसे मरीजों से भी पाला पड़ सकता है जो बिना इंजेक्शन के ठीक नहीं होते ! गांवों, कस्बों में तो मरीज खुद ही कहते हैं ‘डॉक्टर साब इंजेक्शन लगा दो’ मेरा बुखार इंजेक्शन के बिन नहीं जाएगा!
जैसा कि सभी जानते हैं कि भारतवर्ष जो है वह गांवों का देश है और बतौर झोलाछाप डॉक्टर यह भी समझते हैं कि, गांव में और कुछ भले ही न मिले मरीज बहुतायत से मिल जाएंगे शहर की अपेक्षा..!
*झोला छाप डॉक्टर देवदूत नहीं हो सकता*
दमा, मिर्गी, साइटिका से लेकर गुप्तरोग और नामर्दी तक जितनी बीमारियां होती हैं वह सब गांवों को ही होती हैं, गांव के मरीज इन बीमारियों को जीवनभर झेलते हैं, लेकिन शहर आकर इलाज कराना कतई पसंद नहीं करते! किसी कीमत पर झोलाछाप डॉक्टर को देवदूत नहीं कह सकते क्योंकि वह ज्यादातर केसेस को खराब करता है और मरीज धीरे-धीरे कर अधमरा और उसकी परेशानी बढ़ जाती है !
*शहरी डॉक्टरों का अभिजात्य, कांच से अभिमंडित साफ-सुथरा और भव्य क्लीनिक ग्रामीण मरीजों को भयभीत करता है वह गांव में रहकर बीमारी भोग लेता है पर शहरी अस्पताल की आतंकित कर देने वाली स्वच्छता और ऊंचे डॉक्टर का शाश्वत मौन उसे शहर आने से रोकता है* !
झोलाछाप डॉक्टर बनने के दौरान शुरू में दवाओं के चयन आदि में कुछ परेशानियां आती हैं ज्यादातर तो दवा की बोतलों पर उसका नाम आदि लिखा रहता है ! उसे पढ़ने का अभ्यास करते रहते हैं या फिर कुछ दिन के लिए किसी छोटे-मोटे अस्पताल में वार्ड ब्वॉय या कंपाउंडर का काम सीख कर झोला उठाते हैं!
कई डॉक्टर ऐसे भी देखने में आए हैं जो सिर्फ आत्मविश्वास के बल पर बड़े-बड़े ऑपरेशन कर डालते हैं ! घाव पर पट्टी बाँधने या इंजेक्शन लगाने जैसे साधारण काम कंपाउंडरी से सीख कर अस्पताल में कंपाउंडरी करने का मौका न मिले तो किसी मेडिकल स्टोर्स पर दवा बेचने का काम से भी अंग्रेजी दवाओं के नाम जान जाते हैं फिर एक संपूर्ण झोलाछाप डॉक्टर बन कर मरीजों का भविष्य संवारते हैं!
मरीजों की एक सर्वे रिपोर्ट से पता चला है कि कुछ मरीज सिर्फ अंग्रेजी दवाओं से ही ठीक होते हैं! जब तक वे तीन-चार रंग की बहुरंगी कैप्सूल न खा लें, उनकी बीमारी जाती ही नहीं जबकि कतिपय मरीज ऐसे होते हैं जिन्हें होम्योपैथी से बेहतर और कोई गोली लगती ही नहीं ! कुछ तो इतने बदमाश होते हैं कि उन्हें आयुर्वेदिक काढ़ा, पुड़ियाएं और भस्म ही ठीक कर पाते हैं !
*लूट के लिए जाल*…
मरीज आया उसे ग्लूकोज की ड्रिप चढ़ाकर मामले को सीरियस करार देते हैं फिर परिजन को लूटने की कावायत शुरू हो जाती है ड्रिप चढ़ाने से एक ऐसा वातावरण बनता है कि अस्पताल का पूरा कमरा एकाएक गंभीर हो जाता है ! मरीज भी ज्यादा चिल्ला-चोट नहीं करता तथा स्टैंड पर लटकी बोतल को घंटों टकटकी लगाए देखता रहता है !
यदि केस बिगाड़ा गया तो धीरे से अपना पल्ला झाड़ रेफर की भी सुविधा सेटिंग बनाकर पहले से ही रखते हैं ! और तो और कमीशन भी खाते हैं कितनी भी दुर्गति हो वह असहनीय क्यों ना हो मजाल है कि उनकी जमीर जाग जाए मरने वाला घुटघुट कर मर जाता है !
*समय-समय पर सरकार झोलाछाप डॉक्टरों के क्लीनिक पर छापा डालने की मुहिम चलाती रहती है फिर खानापूर्ति कर ठंडे बस्ते में डाल देती है मतलब सब मिलिजुली सरकार है*!
यदि पुरी सख्ती दिखाई जाए तो ईलाज सस्ता और सुविधा संसाधन से भरपूर प्रयास व कयास से चार चांद लग जाए!!