June 15, 2024 10:34:45

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श्री कृष्ण लीला के नाग नथैया के मंचन से तुलसी घाट पर मां गंगा का तट वृंदावन में हो जाता है तब्दील

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” गंगा जी के किनारे तुलसी घाट जहां ‘तुलसीदास’ ने लिखा ‘रामचरित-मानस’ ”

” श्री कृष्ण लीला के नाग नथैया के मंचन से तुलसी घाट पर मां गंगा का तट वृंदावन में हो जाता है तब्दील ”

प्राचीन काल से ही पौराणिक देव भूमि काशी का विशेष महत्व रहा है। मां गंगा के किनारे बसी काशी की धरती में कई पवित्र घाट हैं । यहां रोजाना पूरी श्रद्धा से पूजा-आरती की जाती है। घाटों के शहर वाराणसी में एक घाट तुलसी घाट भी है। ” तुलसी घाट ” जहां संत तुलसीदास जी का गहरा नाता रहा है । कालांतर में इस घाट को ‘लोलार्क घाट’ कहा जाता था। इस घाट पर सूर्य भगवान का एक मंदिर भी है। कहते हैं कि लोलार्क कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। बाद में संत तुलली दास जी के नाम पर सोलहवीं सदी में इसका नाम बदल कर तुलसी घाट कर दिया गया। जो वर्तमान में तुलसी तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण घाट है, घाट एवं समीपवर्ती भागों में लोलार्केश्वर, अमरेश्वर, भोलेश्वर, महिषमर्दिनी देवी, अर्कविनायक, हनुमान (18वीं एवं 20वीं शताब्दी के दो मंदिर), राम पंचायतन के मंदिर हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमान मंदिर की स्थापना स्वयं तुलसीदास जी ने की थी मंदिर के अलावा गोस्वामी तुलसी दास ने यहाँ व्यायाम शाला का भी निर्माण किया था जहाँ आज भी लोग व्ययाम करते है। इस व्यायाम शाला में प्रतिवर्ष जोड़ी, गदा, कुश्ती इत्यादि की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। तुलसी घाट का नाम संत तुलसीदास जी के नाम पर रखा गया है। इसके पीछे भी एक खास वजह है। इस घाट से संत तुलसीदास जी का गहरा नाता है, जिसे आप आज भी देख सकते हैं। कहा जाता है कि संत तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरितमानस की रचना इसी घाट पर की है। इतना ही नहीं, जब संत तुलसीदास जी रामचरितमानस की रचना कर रहे थे, तभी रामचरितमानस उनके हाथों से फिसलकर गंगा जी में गिर गई थी। लेकिन आप जान कर दंग रह जाएंगे कि रामचरितमानस न तो गंगा जी में डूबी और न ही नष्ट हुई, बल्कि गंगा जी की सतह पर तैरती रही। तब तुलसीदास जी ने गंगा में कूद कर रामचरितमानस को पुनः ले लिया था। यह वही घाट है, जहां पहली बार रामलीला का नाट्य मंचन किया गया था। इसके बाद तुलसी घाट पर भगवान राम का मंदिर बनाया गया और यहां हर साल रामलीला का नाट्य मंचन होने लगा। सबसे खास बात यह है कि इस घाट पर ही संत तुलसीदास जी पंचतत्व में विलीन भी हुए थे‌। तुलसीदास से जुड़े अवशेषों को आज भी इस स्थल पर सुरक्षित रखा गया है। इनमें हनुमान जी की मूर्ति, लकड़ी के खंभे और उनका तकिया है। धर्म की नगरी काशी में गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा शुरू की गई श्री कृष्ण लीला के नाग नथैया के मंचन से तुलसी घाट पर मां गंगा का तट वृंदावन में तब्दील हो जाता है ।

सच पूछिए तो बनारस की शान है तुलसी घाट ।

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