पड़ाव/चंदौली माँ गंगा के पावन तट पर स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के पुनीत प्रांगण में परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की
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माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी का निर्वाण दिवस मनाया गया
पड़ाव/चंदौली माँ गंगा के पावन तट पर स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के पुनीत प्रांगण में परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की
माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी का निर्वाण दिवस मनाया गया
पड़ाव/चंदौली माँ गंगा के पावन तट पर स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के पुनीत प्रांगण में परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की जननी “माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी” का 33वाँ निर्वाण दिवस बड़ी ही श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। बाबा गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु एवं माताजी की समाधि पर माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। इसके बाद श्री पृथ्वीपाल जी ने सफलयोनि का पाठ किया। वक्ताओं में डॉ० दिव्या सिंह, श्रीमती किरण द्विवेदी, श्रीमती पूनम सिंह (पड़ाव), श्रीमती अल्का सिंह, श्रीमती पूनम सिंह (डीआईजी कालोनी) और छोटी बच्ची शुभदा पाण्डेय ने अपने विचार व्यक्त किये। आकृति कुमारी, श्रीमती जया दूबे, कुमारी वैष्णवी ने भजन गाया। कुमारी राशि ने मंगलाचरण किया। गोष्ठी का सञ्चालन अवधूत भगवन राम नर्सरी विद्यालय की अध्यापिका श्रीमती सुष्मिता ने किया
अच्छे संस्कारों को अपनाकर शक्ति प्राप्त करना आवश्यक पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी
आज माताजी के निर्वाण दिवास पर माताजी की अच्छी और प्रेरणादायी बातों को आप सभी से हमलोगों ने सुना। बातें तो बहुत सी अच्छी होती हैं लेकिन उस पर चलना हमारे लिए कठिन हो जाता है। उसके पीछे कारण यही है कि हमलोग अपने दैनिक कार्यों में से समय निकालकर थोड़ा ध्यान-धारणा, जाप-पूजा, चिंतन-मनन नहीं कर पाते हैं। इससे हमारा भटकाव दूर होता है, स्थिरता हमको प्राप्त होती है और जिसके लिए हम इन स्थानों पर आते हैं उसकी सार्थकता भी सिद्ध होती है। आज के समय में लोगों को अनेक तरह के कष्ट और पीड़ाएँ हैं, परेशानियाँ हैं और इन समस्याओं से हमारा समाज ही नहीं, पूरा देश और पूरा विश्व प्रताड़ित है। मानवकृत ऐसे-ऐसे कृत्य समाज में हो रहे हैं, हमलोग विचलित और दिशाहीन हो गए हैं जिससके चलते प्रकृति भी कुपित हो जा रही है। क्योंकि कहा भी है कि जो पिंडे सो ब्रह्मांडे। प्रकृति जब कुपित होती है तो उसके कोप से कोई बचता नहीं। यह सब बातें हमलोग सैकड़ों-हजारों बार सुन चुके हैं फिर भी हमारी चेतना जागती नहीं। क्योंकि हमने कभी अपने-आप को स्थिर करने का स्थिर होने का प्रयत्न ही नहीं किया। एक तो आज मनुष्य इतने कष्ट, दुःख और प्रताड़नाएँ भोग रहा है, हम सभी भोग रहे हैं, फिर भी मानुष ही मनुष्य को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। वह आपको कुचलते हुए आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में लगा हुआ है। धन के लिए लोग किसी भी स्तर पर लोग गिर जा रहे हैं। यहाँ तक कि भाई-बंधू रिश्तेदार अपने ही लोगों को प्रताड़ित करने से हिचक नहीं रहे हैं। जबकि पहले न इतनी चीजे सभी को उपलब्ध थीं, न कोई आधुनिकता थी, न आवागमन की सुविधाएँ थीं, थोड़े में ही लोग संतुष्ट रहते थे और एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहते थे। सभी लोग अपने-अपने कार्यों में लगे रहते थे। पहले के परिवारों में आपस में एक नैतिकता थी, एक चरित्र था। अगर हमलोग अच्छा आचरण-व्यवहार करेंगे, उस पर चलेंगे , तो कष्ट हमें कष्ट को सहने की शक्ति मिलेगी। क्योंकि संसार में कष्ट-ही-कष्ट है, दुःख-ही-दुःख है, परेशानियाँ-ही-परेशानियाँ हैं, चाहे वह मानसिक हो, शारीरिक हो। इसका एक मात्र उपाय है कि गुरुजनों ने जो रास्ता बताया है, जो वह कहते हैं, उस पर आप चलेंगे और उनकी छाया को, उनके एक कण को आप प्राप्त कर लेंगे तो इस दुनिया के दुःख पर परेशानियाँ हमको बिल्कुल परेशान नहीं करेंगी। हम अपनी आत्मा को अपने ही पद्दलित कर देते हैं।
जो भी इन अवसरों पर आश्रमों में हमलोग इकट्ठा होते हैं, विहारों में इकट्ठा होते हैं, तो आप-हम सभी को वह महापुरुष लोग यही प्रेरणा देते हैं और हमारी इस पारिवारिक गोष्ठी में भी अभी जो वक्ताओं ने कहा, अपना परिवार समझ कर बातें की तो मैं भी आपलोग को अपना परिवार समझ कर कह रहा हूँ कि हमलोग अभी से भी तो जाग जायँ। नहीं, तो अपना कर्म तो हमें भोगना ही होगा। हमलोग अपने-आप को, अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं अपनी मानसिकता को ठीक कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए हमको वह आत्मबल चाहिए, वह शक्ति चाहिए। क्योंकि शिव भी बिना शक्ति के शव के समान होते हैं। शक्ति का साथ होता है तो सबकुछ करने में समर्थ होते हैं। अगर हममें शक्ति का अभाव है तो उसकी जो हम आराधना-पूजा-प्रार्थना करना चाहते हैं वह सही मायने में हमलोग कर नहीं रहे हैं। फूल चढ़ाकर या अक्षत चढ़ाकर या मीठा चढ़ाकर, फल चढ़ाकर, पैसा फेंककर चाहते हैं कि हो जाए वैसा तो वह नहीं हो पा रहा है। शक्ति का अर्जन तब होगा जब हमारे आचरण-व्यवहार, ध्यान-धारणा, अपने संस्कार-संस्कृति, चरित्र को बनाए रखेंगे और उन महापुरुषों की वाणियों का अवलंबन लेंगे। बगैर शक्ति का संग्रह किए हमलोग कुछ नहीं कर पाएंगे। तो अपने बच्चों में संस्कार देने के लिए जो आपलोगों ने अभी सुना उस पर भी अवश्य ध्यान दें कि हमलोग केवल जन्म के बाद ही नहीं जन्म के पहले से भी उन पर ध्यान दें। जैसा कि हमारे यहाँ एक पुस्तिका है- “मृत्यु अंत्येष्टि क्रिया” उसमे वह सब अच्छे से वर्णित है। कई लोग तो उसका नाम सुनते ही घबराते हैं, क्योंकि मरने से बहुत डरते हैं, भागते हैं उसको पढ़ने से। मृत्यु से ऐसा डरते हैं लोग जबकि मृत्यु आनी सुनिश्चित है। वह होकर ही रहेगा हमलोगों के साथ। हमलोग अपना-अपना कार्य करके, अपने-अपने संस्कारों को बनाकर यहाँ से चले जायेंगे। जो ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है वह उसकी तरफ झुकता है और अपने सारे कार्यों को करते हुए भी उसको प्राप्त करता है। हमारे इतिहास में भी है, हमारे महापुरुष भी ऐसे हुए हैं, गृहस्थ भी हुए हैं, विरक्त भी हुए हैं, बहुत बड़े लोग भी हुए हैं और बिल्कुल जो अनपढ़ हैं जिनके पास कुछ नहीं है उन्होंने भी प्राप्त किया है। उसको प्राप्त करने में कोई जाति, धर्म, मजहब, अमीर, गरीब की कोई बाध्यता नहीं है। बस हमको थोड़ा विवेक चाहिए, बुद्धि चाहिए कि हम सारे अच्छे कर्मों को करते हुए उसको प्राप्त करने की ओर हमलोग अग्रसर हों। हमारे जीवन के आवागमन से छुटकारा उसी से मिलेगा। नहीं तो अनेक योनियों में जन्म लेकर अनेक दुखों को सहकर हमलोग वही करते रहेंगे। अपनी मानसिकता शुद्ध रखें और अपने मन को वहाँ रखें जहाँ पर गुरुजनों की आप पर कृपा है। उनके विचारों का अनुसरण करते रहें अपने हर कार्यों को करते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहें। जैसा कि वह डॉक्टर साहब कह रही थीं कि आप आधुनिक चीजों का, टेक्नोलॉजी का पूरा आप लोग इस्तेमाल करिए, लेकिन अपने को गर्त में जाने से बचाने के लिए आपको वही रास्ता अपनाना होगा। अपने कर्मों से हमारे लिए जो भोग है वह तो भोगना सुनिश्चित है, लेकिन उससे भी हमलोग अपने को निजात दिला सकते हैं। लेकिन हममें न उतना विश्वास है, न श्रद्धा है, न भक्ति है। इससे भी हो सकता है, क्योंकि कहा भी गया है कि “मंत्र महामणि विषय व्याल के, मेटत कठिन कुअंक भाल के”। जो हमारे लिए खराब लिखा है आने वाले समय के लिए, उसको भी हमलोग टाल सकते हैं। मनुष्य के पास इतनी शक्ति होती है, लेकिन वह पहचानता नहीं। जब तक उस शक्ति को नहीं प्राप्त करेगा उसका आवाहन नहीं करेगा तबतक हमलोग बहुत कमजोर हुए रहेंगे। मरने से भी डरते रहेंगे तो भी कुछ नहीं कर सकते। जो व्यक्ति मृत्यु से नहीं डरता है, वह कुछ भी कर सकता है। उसके पास तो शक्ति आनी-ही-आनी है। शक्ति उसी को कहा जाता है जो निर्भय होकर, बलवान होकर, समझदार होकर, वीर्यवान होकर अपने कर्तव्य पथ पर चलता है, उसी के पास शक्ति आती है। तो बंधुओं! आज के इस विचार गोष्ठी में आपलोगों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ। और हमारे जो महापुरुषों ने महामैत्रायणी योगिनी जी ने भी हमलोग को जो सीख दी है, उस पर हमलोग जरूर चलें और अपने संस्कारों को बचाए रहें। यही प्रार्थना करता हूँ। क्योंकि यही हमारे साथ जाएगा भी, और जितना दिखाई दे रहा है, सुनाई पड़ रहा है, जिसको हम भोग रहे हैं, उपभोग कर रहे हैं, वह कुछ नहीं रहेगा, कोई साथ नहीं जाएगा। हमारा संस्कार, हमारे कर्म हमको भोगना ही होगा। अच्छा, अच्छा रहेगा। बुरा, बुरा होगा। इसी के साथ मैं आपलोगों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं और अपनी वाणी को विराम देता हूँ। आप सभी में बैठे उसका अज्ञात को प्रणाम करता हूँ।
जननी “माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी” का 33वाँ निर्वाण दिवस बड़ी ही श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। बाबा गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु एवं माताजी की समाधि पर माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। इसके बाद श्री पृथ्वीपाल जी ने सफलयोनि का पाठ किया। वक्ताओं में डॉ० दिव्या सिंह, श्रीमती किरण द्विवेदी, श्रीमती पूनम सिंह (पड़ाव), श्रीमती अल्का सिंह, श्रीमती पूनम सिंह (डीआईजी कालोनी) और छोटी बच्ची शुभदा पाण्डेय ने अपने विचार व्यक्त किये। आकृति कुमारी, श्रीमती जया दूबे, कुमारी वैष्णवी ने भजन गाया। कुमारी राशि ने मंगलाचरण किया। गोष्ठी का सञ्चालन अवधूत भगवन राम नर्सरी विद्यालय की अध्यापिका श्रीमती सुष्मिता ने किया
अच्छे संस्कारों को अपनाकर शक्ति प्राप्त करना आवश्यक पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी
आज माताजी के निर्वाण दिवास पर माताजी की अच्छी और प्रेरणादायी बातों को आप सभी से हमलोगों ने सुना। बातें तो बहुत सी अच्छी होती हैं लेकिन उस पर चलना हमारे लिए कठिन हो जाता है। उसके पीछे कारण यही है कि हमलोग अपने दैनिक कार्यों में से समय निकालकर थोड़ा ध्यान-धारणा, जाप-पूजा, चिंतन-मनन नहीं कर पाते हैं। इससे हमारा भटकाव दूर होता है, स्थिरता हमको प्राप्त होती है और जिसके लिए हम इन स्थानों पर आते हैं उसकी सार्थकता भी सिद्ध होती है। आज के समय में लोगों को अनेक तरह के कष्ट और पीड़ाएँ हैं, परेशानियाँ हैं और इन समस्याओं से हमारा समाज ही नहीं, पूरा देश और पूरा विश्व प्रताड़ित है। मानवकृत ऐसे-ऐसे कृत्य समाज में हो रहे हैं, हमलोग विचलित और दिशाहीन हो गए हैं जिससके चलते प्रकृति भी कुपित हो जा रही है। क्योंकि कहा भी है कि जो पिंडे सो ब्रह्मांडे। प्रकृति जब कुपित होती है तो उसके कोप से कोई बचता नहीं। यह सब बातें हमलोग सैकड़ों-हजारों बार सुन चुके हैं फिर भी हमारी चेतना जागती नहीं। क्योंकि हमने कभी अपने-आप को स्थिर करने का स्थिर होने का प्रयत्न ही नहीं किया। एक तो आज मनुष्य इतने कष्ट, दुःख और प्रताड़नाएँ भोग रहा है, हम सभी भोग रहे हैं, फिर भी मानुष ही मनुष्य को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। वह आपको कुचलते हुए आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में लगा हुआ है। धन के लिए लोग किसी भी स्तर पर लोग गिर जा रहे हैं। यहाँ तक कि भाई-बंधू रिश्तेदार अपने ही लोगों को प्रताड़ित करने से हिचक नहीं रहे हैं। जबकि पहले न इतनी चीजे सभी को उपलब्ध थीं, न कोई आधुनिकता थी, न आवागमन की सुविधाएँ थीं, थोड़े में ही लोग संतुष्ट रहते थे और एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहते थे। सभी लोग अपने-अपने कार्यों में लगे रहते थे। पहले के परिवारों में आपस में एक नैतिकता थी, एक चरित्र था। अगर हमलोग अच्छा आचरण-व्यवहार करेंगे, उस पर चलेंगे , तो कष्ट हमें कष्ट को सहने की शक्ति मिलेगी। क्योंकि संसार में कष्ट-ही-कष्ट है, दुःख-ही-दुःख है, परेशानियाँ-ही-परेशानियाँ हैं, चाहे वह मानसिक हो, शारीरिक हो। इसका एक मात्र उपाय है कि गुरुजनों ने जो रास्ता बताया है, जो वह कहते हैं, उस पर आप चलेंगे और उनकी छाया को, उनके एक कण को आप प्राप्त कर लेंगे तो इस दुनिया के दुःख पर परेशानियाँ हमको बिल्कुल परेशान नहीं करेंगी। हम अपनी आत्मा को अपने ही पद्दलित कर देते हैं।
जो भी इन अवसरों पर आश्रमों में हमलोग इकट्ठा होते हैं, विहारों में इकट्ठा होते हैं, तो आप-हम सभी को वह महापुरुष लोग यही प्रेरणा देते हैं और हमारी इस पारिवारिक गोष्ठी में भी अभी जो वक्ताओं ने कहा, अपना परिवार समझ कर बातें की तो मैं भी आपलोग को अपना परिवार समझ कर कह रहा हूँ कि हमलोग अभी से भी तो जाग जायँ। नहीं, तो अपना कर्म तो हमें भोगना ही होगा। हमलोग अपने-आप को, अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं अपनी मानसिकता को ठीक कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए हमको वह आत्मबल चाहिए, वह शक्ति चाहिए। क्योंकि शिव भी बिना शक्ति के शव के समान होते हैं। शक्ति का साथ होता है तो सबकुछ करने में समर्थ होते हैं। अगर हममें शक्ति का अभाव है तो उसकी जो हम आराधना-पूजा-प्रार्थना करना चाहते हैं वह सही मायने में हमलोग कर नहीं रहे हैं। फूल चढ़ाकर या अक्षत चढ़ाकर या मीठा चढ़ाकर, फल चढ़ाकर, पैसा फेंककर चाहते हैं कि हो जाए वैसा तो वह नहीं हो पा रहा है। शक्ति का अर्जन तब होगा जब हमारे आचरण-व्यवहार, ध्यान-धारणा, अपने संस्कार-संस्कृति, चरित्र को बनाए रखेंगे और उन महापुरुषों की वाणियों का अवलंबन लेंगे। बगैर शक्ति का संग्रह किए हमलोग कुछ नहीं कर पाएंगे। तो अपने बच्चों में संस्कार देने के लिए जो आपलोगों ने अभी सुना उस पर भी अवश्य ध्यान दें कि हमलोग केवल जन्म के बाद ही नहीं जन्म के पहले से भी उन पर ध्यान दें। जैसा कि हमारे यहाँ एक पुस्तिका है- “मृत्यु अंत्येष्टि क्रिया” उसमे वह सब अच्छे से वर्णित है। कई लोग तो उसका नाम सुनते ही घबराते हैं, क्योंकि मरने से बहुत डरते हैं, भागते हैं उसको पढ़ने से। मृत्यु से ऐसा डरते हैं लोग जबकि मृत्यु आनी सुनिश्चित है। वह होकर ही रहेगा हमलोगों के साथ। हमलोग अपना-अपना कार्य करके, अपने-अपने संस्कारों को बनाकर यहाँ से चले जायेंगे। जो ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है वह उसकी तरफ झुकता है और अपने सारे कार्यों को करते हुए भी उसको प्राप्त करता है। हमारे इतिहास में भी है, हमारे महापुरुष भी ऐसे हुए हैं, गृहस्थ भी हुए हैं, विरक्त भी हुए हैं, बहुत बड़े लोग भी हुए हैं और बिल्कुल जो अनपढ़ हैं जिनके पास कुछ नहीं है उन्होंने भी प्राप्त किया है। उसको प्राप्त करने में कोई जाति, धर्म, मजहब, अमीर, गरीब की कोई बाध्यता नहीं है। बस हमको थोड़ा विवेक चाहिए, बुद्धि चाहिए कि हम सारे अच्छे कर्मों को करते हुए उसको प्राप्त करने की ओर हमलोग अग्रसर हों। हमारे जीवन के आवागमन से छुटकारा उसी से मिलेगा। नहीं तो अनेक योनियों में जन्म लेकर अनेक दुखों को सहकर हमलोग वही करते रहेंगे। अपनी मानसिकता शुद्ध रखें और अपने मन को वहाँ रखें जहाँ पर गुरुजनों की आप पर कृपा है। उनके विचारों का अनुसरण करते रहें अपने हर कार्यों को करते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहें। जैसा कि वह डॉक्टर साहब कह रही थीं कि आप आधुनिक चीजों का, टेक्नोलॉजी का पूरा आप लोग इस्तेमाल करिए, लेकिन अपने को गर्त में जाने से बचाने के लिए आपको वही रास्ता अपनाना होगा। अपने कर्मों से हमारे लिए जो भोग है वह तो भोगना सुनिश्चित है, लेकिन उससे भी हमलोग अपने को निजात दिला सकते हैं। लेकिन हममें न उतना विश्वास है, न श्रद्धा है, न भक्ति है। इससे भी हो सकता है, क्योंकि कहा भी गया है कि “मंत्र महामणि विषय व्याल के, मेटत कठिन कुअंक भाल के”। जो हमारे लिए खराब लिखा है आने वाले समय के लिए, उसको भी हमलोग टाल सकते हैं। मनुष्य के पास इतनी शक्ति होती है, लेकिन वह पहचानता नहीं। जब तक उस शक्ति को नहीं प्राप्त करेगा उसका आवाहन नहीं करेगा तबतक हमलोग बहुत कमजोर हुए रहेंगे। मरने से भी डरते रहेंगे तो भी कुछ नहीं कर सकते। जो व्यक्ति मृत्यु से नहीं डरता है, वह कुछ भी कर सकता है। उसके पास तो शक्ति आनी-ही-आनी है। शक्ति उसी को कहा जाता है जो निर्भय होकर, बलवान होकर, समझदार होकर, वीर्यवान होकर अपने कर्तव्य पथ पर चलता है, उसी के पास शक्ति आती है। तो बंधुओं! आज के इस विचार गोष्ठी में आपलोगों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ। और हमारे जो महापुरुषों ने महामैत्रायणी योगिनी जी ने भी हमलोग को जो सीख दी है, उस पर हमलोग जरूर चलें और अपने संस्कारों को बचाए रहें। यही प्रार्थना करता हूँ। क्योंकि यही हमारे साथ जाएगा भी, और जितना दिखाई दे रहा है, सुनाई पड़ रहा है, जिसको हम भोग रहे हैं, उपभोग कर रहे हैं, वह कुछ नहीं रहेगा, कोई साथ नहीं जाएगा। हमारा संस्कार, हमारे कर्म हमको भोगना ही होगा। अच्छा, अच्छा रहेगा। बुरा, बुरा होगा। इसी के साथ मैं आपलोगों के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं और अपनी वाणी को विराम देता हूँ। आप सभी में बैठे उसका अज्ञात को प्रणाम करता हूँ।