October 3, 2025 03:14:09

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बार्क और इसरो की मदद से स्वच्छ हो रहा गंगा जल, हर दिन लिए जा रहे सैंपल

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बार्क और इसरो की मदद से स्वच्छ हो रहा गंगा जल, हर दिन लिए जा रहे सैंपल

*सीवेज ही नहीं, संगम क्षेत्र से निकलने वाले हर गंदे पानी को किया जा रहा है साफ*

*16 सौ करोड़ रुपए खर्च कर हो रहा कचरे और फीकल स्लज का प्रबंधन और ट्रीटमेंट*

*ग्रे वॉटर के लिए बनाए गए हैं 75 कृत्रिम तालाब, बायो रेमेडिएशन से किया जा रहा ट्रीट*

*महाकुम्भ नगर, 24 फरवरी।* महाकुम्भ अपने अंतिम पड़ाव पर है। प्रदेश सरकार द्वारा जहां एक ओर महाकुम्भ में आए 60 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं की सुविधा का पूरा खयाल रखा जा रहा है। वहीं, इतने भव्य आयोजन को स्वच्छ बनाने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। महाकुम्भ मेला क्षेत्र में 1.5 लाख से अधिक टॉयलेट और यूरिनल स्थापित किए गए और 1600 करोड़ रुपए खर्च कर फीकल स्लज के प्रबंधन और ट्रीटमेंट का इंतजाम किया गया है। इसके साथ ही पहली बार संगम क्षेत्र में निकलने वाले ग्रे वॉटर को भी 75 कृत्रिम तालाब बनाकर बायो रेमेडिएशन तकनीक से ट्रीट किया जा रहा है। खास बात यह है कि इसके लिए बार्क (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) और इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) जैसे संस्थानों की भी मदद ली गई है।

*16 सौ करोड़ रुपए से किया जा रहा महाकुम्भ में कचरे और फीकल स्लज का प्रबंधन-ट्रीटमेंट*
प्रदेश सरकार की ओर से पूरे महाकुंभ के आयोजन पर 7 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इसमें से 16 सौ करोड़ रुपए सिर्फ पानी और वेस्ट मैनेजमेंट पर लगाए गए हैं । इसमें से भी 316 करोड़ रुपए मेला क्षेत्र को खुले में शौच मुक्त (ODF) बनाने पर खर्च किए गए हैं, जिसमें टॉयलेट और यूरिनल की स्थापना और उनकी निगरानी शामिल हैं । मेला क्षेत्र में 1.45 लाख शौचालय बनाए गए हैं। इनके अस्थायी सेप्टिक टैंकों में इकट्ठा होने वाले कचरे और स्लज के ट्रीटमेंट के लिए फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट (FSTPs) स्थापित किए गए हैं। कचरे के ट्रीटमेंट में हाइब्रिड ग्रेन्युलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर (hgSBR) जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह तकनीक बार्क और इसरो के साथ पार्टनरशिप में विकसित की गई है ।

*तीन सेक्टरों में स्थापित किए गए .5 एमएलडी के तीन अस्थायी एसटीपी*
जल निगम नगरीय के सहायक अभियंता प्रफुल्ल कुमार सिंह ने बताया कि महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 10,15,16 में 4.76 करोड़ की लागत से .5 mld के तीन अस्थायी एसटीपी स्थापित किए गए हैं। नैनी, झूसी और सलोरी में स्थापित प्री-फैब्रिकेटेड सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (FSTP ) और BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) के सहयोग से महाकुम्भ मेला क्षेत्र में बनाए गए HgSBR (हाइब्रिड ग्रैनुलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर) तकनीकी पर आधारित STP (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) के माध्यम से निकलने वाले कचरे और मल का शोधन किया जा रहा है। टॉयलेट से निकलने वाला मल लगभग 250 सेस पूल वीकल के माध्यम से रोजाना मेला प्राधिकरण द्वारा FSTP प्री-फैब्रिकेटेड सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक लाया जाता है। यहां ट्रीटमेंट कर इसे झूंसी स्थित मनसैता नाला में छोड़ दिया जाता है । यह नाला टैप कर के सीवर लाइन के जरिए एसपीएस में भेजा गया है, वहां से इस नाले का पानी एसटीपी भेजा जाता है, जहां इसे ट्रीट करने के बाद पानी गंगा जी में छोड़ा जाता है ।

*बार्क द्वारा विकसित बैक्टीरिया कर रहा है पानी को साफ*
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) के डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के प्रतिनिधि अरुण कुमार ने बताया कि फीकल स्लज का ट्रीटमेंट काफी कॉम्प्लिकेटेड है, अब तक कहीं भी फीकल स्लज को डायरेक्ट ट्रीट नहीं किया गया है। फीकल स्लज को एसटीपी में डायरेक्ट मिला दिया जाता है, ताकि वह डायल्यूट हो जाए, लेकिन इस बार हमने ऐसा नहीं किया। हमने प्रयागराज जल निगम नगरीय को इसके ट्रीटमेंट के लिए बार्क की टेक्नोलॉजी का प्रपोजल दिया, जो स्वीकार कर लिया गया । सबसे पहले हमने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के कलपक्कम केंद्र में बैक्टीरिया डिवेलप किया, जिसमें अलग-अलग तरह के कई गुण हैं। इस बैक्टीरिया में एक ही रिएक्टर में हम एरोबिक और अनएरोबिक दोनों ट्रीटमेंट कर सकते हैं। इसके बाद हमने महाकुम्भ मेला क्षेत्र के तीन अलग-अलग सेक्टरों में एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) स्थापित किए। इन एसटीपी में बैक्टीरिया वन टाइम फीड है, मतलब बार-बार बैक्टीरिया डालने की जरूरत नहीं है। hgSBR तकनीकी के अलावा इन तीनों प्लांट में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार द्वारा विकसित एक अन्य तकनीक, वाटर पॉलिशिंग का भी प्रयोग किया गया है, जिसमें एटॉमिक ओजोन को माइक्रो बब्बलिङ्ग के द्वारा hgSBR के रिएक्टर में ट्रीट किए गए पानी में एक अन्य रिएक्टर में जमा करके उसमें मिलाया जाता है। इस प्रकार जल की अन्य अशुद्धियां जैसे रंग, गंध, बैक्टीरिया इत्यादि को पूरी तरह से समाप्त किया जाता है। बैक्टीरिया और एटॉमिक ओजोन के अलावा पानी को साफ करने के लिए प्लांट में किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है, क्योंकि ब्लीच या क्लोरीन का इस्तेमाल करने पर उसके कुछ अंश पानी में रह ही जाते हैं। बैक्टीरिया के अलावा हमने एटॉमिक ओजोन का इस्तेमाल फीकल स्लज के ट्रीटमेंट के लिए किया है, जिसमें 2 टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की गई है, इसमें ऑक्सीजन की टेक्नोलॉजी इसरो की है और वाटर पॉलिसिंग की टेक्नोलॉजी बार्क की है। इस तरह से पूरे ट्रीटमेंट में बार्क की 2 और इसरो की 1 टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। सबसे खास बात यह है कि इस प्लांट में ट्रीट किया हुआ पानी प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मानकों के अनुरूप है। एसटीपी की बात करें, तो इस प्लांट को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह मेले के बाद भी कहीं भी स्थापित किया जा सकता है, फिर से इसे इसी रूप में बैक्टीरिया के साथ चालू किया जा सकता है।

*मेला क्षेत्र में बने 75 कृत्रिम तालाब, ग्रे वाटर को भी किया जाता है ट्रीट*
सहायक अभियंता ने बताया कि मेला क्षेत्र में नहाने, कपड़े धोने, बर्तन धोने जैसे रोजमर्रा के कार्यों से निकलने वाला ग्रे वाटर भी सीधे नदी में प्रवाहित न हो इसकी भी व्यवस्था की गई है। मेला क्षेत्र में बने 75 कृत्रिम तालाबों में मेला क्षेत्र का सारा ग्रे वाटर ड्रेनेज लाइनों के माध्यम से लाया जाता है और बायो रेमेडिएशन के माध्यम से ट्रीट करने के बाद ही इसको नदी में प्रवाहित किया जाता है। मेला क्षेत्र और जिले में किए जा रहे सीवेज शोधन के सभी काम की मानीटरिंग समय-समय पर UPPCB, स्वतन्त्र जांच एजेन्सी और OCEMS के माध्यम से की जा रही है ।
प्रयागराज में स्थापित 10 एसटीपी की जांच UPPCB (उत्तर प्रदेश pollution कंट्रोल बोर्ड ), CPCB (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ) और थर्ड पार्टी इन्सपेक्शन (MNIT) के माध्यम से करवाई गई, जिसमें सभी पैरामीटर (BOD, COD, TSS, pH, Fecal Coliform) एनजीटी द्वारा निर्धारित मानकों के तहत पाए गए हैं। सभी 10 एसटीपी और जियो ट्यूब के माध्यम से किए जा रहे शोधन की OCEMS (ऑनलाइन सतत उत्सर्जन और अपशिष्ट निगरानी प्रणाली) के माध्यम से सभी पैरामीटर की निगरानी चौबीस घंटे की जा रही है, जिसे वेबलिंक के माध्यम से कोई भी देख सकता है। इसके अलावा जियो ट्यूब से किए जा रहे जल शोधन की गुणवत्ता की जांच UPPCB (उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) और आईआईटी मद्रास की टीम कर रही है, जो सभी पैरामीटर ( BOD, COD, TSS, PH, Fecal Coliform) NGT द्वारा निर्धारित मानकों के अन्तर्गत पाए गए हैं ।

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