पिता को बेटी की कमाई खाने के ताने मिलते थे समाज से, इसीलिए गोली मारकर हत्या कर दी
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पिता को बेटी की कमाई खाने के ताने मिलते थे समाज से, इसीलिये गोली मारकर हत्या कर दी
अब पिता दीपक यादव की मनोदशा देखिये.….
एक पिता जो अपनी पुत्री को टेनिस खेलने के लिए प्रेरित करता था , जिसके साथ ट्रेनिंग सेंटर जाया करता था , टूर्नामेंट्स में जिसके साथ रहता था , हर तरह से अपनी बेटी का समर्थन करता था , वो पिता अपनी उसी 25 वर्षीय बेटी को तीन गोलियां मार देता है कि वह टेनिस एकेडमी चला रही थी और वहां हेड कोच थी ? और तीन महीने पहले शुरु हुई टेनिस एकेडमी से उसकी इतनी कमाई होने लगी कि समाज ताने मारने लगा……इतने बड़े न्यूज़ पेपर के संपादक और संवाददाता क्या भांग खाकर न्यूज लिखते हैं? कोई कॉमन सेंस है या नहीं ? …….
पहले से ही आभास था कि मामला जरुर कुछ गंभीर रहा होगा, यही निकला भी क्योंकि बेटी को मार डालने के अपराध बोध की मन:स्थिति में भी वह अपने आपको रोक नहीं सका……..
राधिका के पिता की माली हालात देखिये-
कोई साधारण ब्यक्ति भी ये बता देगा कि टेनिस खेलना भारत में साधारण मिडिल क्लास के बूते की बात नहीं है…यह बहुत महंगा खेल है…..पिता की किराए की अच्छी आमदनी है, पुराने गुड़गांव में एक कार पार्ट्स की दुकान थी , जिसे उसने बंद कर दिया था, स्वयं और बेटा प्रॉपर्टी डीलर है, खुद का पॉश सुशांतलोक गुड़गांव में बड़ा मकान है(मकान फोटो में, कम से कम 25 करोड़ की कीमत का)……..कोई क्यों उसे कमाई खाने का ताना मारता भला?
असल बात यह थी कि राधिका इंस्टाग्राम पर न सिर्फ रील बना रही थी बल्कि इनामुल हक के साथ बना रही थी,15 दिन से इस बात पर झगड़ा चल रहा था…..वह पिता जो बेटी बढाओ के सिद्धांत पर चल रहा था , अचानक ठिठक जाता है…. आखिरकार वह अपना निर्णय ले लेता है….
हिन्दू ऐसे मामलों में अपने आपको निरा अकेला पाता है, उसके कुटुम्बी भी उसे मजाक का पात्र बनते देखना चाहते हैं, जबकि इसके विपरीत हक का पूरा समाज खड़ा होता है
संभवत: इसमें हक ही दोषी होगा… हो सकता है कि धन संपदा जायदाद के पाने के लिये कोई भावनात्मक दुष्चक्र बना कर लड़की को फसाया हो……नाम से समझ में आ रहा है संभवत: बंगाली हो, ऐसे नाम बंगाली मे ज्यादा होते हैं……
निर्णय सही है या ग़लत…इस पर बहस चल रही है….कुछ माडर्न लोग बता रहे हैं कि बेटी को अलग कर दिया होता, मारना नहीं था…..क्या ब्यवहार में अलग करना इतना आसान होता है? वेस्टर्न थॉट्स को ही सर्वोपरि मानने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि भारतीय समाज आज के दौर में भी उतना ब्यक्तिवादी नहीं बन पाया है जितना यूरोप रोमन दौर में था….भारत पर कानून जरुर एंग्लो-अमेरिकन लाद दिये गये हैं क्योंकि उस समाज और कानून को, मैकालेवादी चश्में से देखने वाले लोग, आदर्श मानते हैं……जबकि वह एक बिखरा हुआ समाज है और स्त्री अतिस्वातंत्र्य ने उस समाज को तो अस्त-व्यस्त कर ही दिया है, वह स्वयं भी पारिवारिक संरक्षण के अभाव में पूर्णतः बर्बाद हैं….. कानून सामाजिक ब्यवस्था के अनुरूप होने चाहिये न कि किसी समाज की नकल……18 वर्ष की कच्ची उम्र को भारतीय कानून विवाह जैसा निर्णय लेने के उपयुक्त मानता है, जब हार्मोन्स उफान पर होते हैं…फिजिकली विकसित हो जाने का मतलब मेंटली विकसित हो जाना नहीं है, अनुभवी हो जाना नहीं है…..ऐसे कानूनों से लाखों सनातनी बालिकाएं असमय नरक में समा रहीं हैं और हम 75 वर्ष से चुपचाप देख रहे हैं…….साथ ही भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट अपनी मर्जी से विवाह करने वाली लड़की को भी पिता की सम्पत्ति पर भी अधिकार देता है, पिता उसे बेदखल नहीं कर सकता….कुछ महीने पूर्व अब्दुला से विवाह कर कन्वर्ट हो चुकी लड़की को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सम्पत्ति में अधिकार दिया गया…..अमीर पिता देखता रह गया….और दीपक यादव जैसे पिता निर्णय तो अपना लागू कर देते हैं परन्तु पूरा जीवन अपनी प्यारी बेटी को अपने हाथों मार डालने का दुख और ग्लानि का भाव लिये नरक ही जीते हैं, उनके लिये तो इधर कुआं उधर खाई है…… जहां भी देखेंगे, सम्पूर्ण सिविल कानून सनातन के बधियाकरण के लिये बनाये गये हैं….और हां, यहां ब्राह्मण बीच में नहीं आया है लेकिन आवाज आने वाली होगी कि Brahminical patriachy की मानसिकता से ग्रसित ब्यक्ति ने बेटी को मार डाला….