विधानसभा चुनावों में क्या कांग्रेस 2018 वाला प्रदर्शन दोहरा पाएगी?
विधानसभा चुनावों में क्या कांग्रेस 2018 वाला प्रदर्शन दोहरा पाएगी?
पांच राज्यों के चुनावों को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
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देश के पांच राज्यों में हो रहे चुनावों का अंतिम चरण तीस नवंबर को सायं 6 बजे पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही न्यूज चैनलों पर एग्जिट पोल के परिणाम आने शुरू होंगे, लेकिन चुनाव आयोग 3 दिसंबर को मतगणना के बाद ही परिणाम जारी करेगा। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनावों को छह माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसलिए देश के सभी राजनीतिक दलों की निगाह इन चुनावों के परिणाम पर लगी हुई है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इन चुनावों में 2018 के प्रदर्शन को दोहरा पाएगी? तेलंगाना में तो वीआरएस की ही सरकार बनी थी, जबकि मिजोरम में क्षेत्रीय दलों के गठबंधन से सरकार बन पाई, लेकिन हिंदी भाषाी राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला।2013 में इन तीनों हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की सरकार थी, लेकिन सत्ता विरोधी माहौल के चलते भाजपा को 2018 में इन तीनों राज्यों में हार का सामना करनापड़ा। डेढ़ वर्ष बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की फूट के कारण कमलनाथ की सरकार गिरी और भाजपा को फिर से सत्ता में आने का अवसर मिल गया, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार पूरे पांच वर्ष चली। भाजपा का दवा है कि अब वह इन तीनों राज्यों में बहुमत हासिल कर रही है। जबकि कांग्रेस मध्यप्रदेश में सत्ता विरोधी लहर बताकर जीत का दावा कर रही है तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में योजनाओं के दम पर पुन: सत्ता में आने का दावा है। कांग्रेस के लिए इन तीनों राज्यों में 2018 वाले प्रदर्शनी की चुनौती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ङ्क्षहदी भाषी राज्यों में चुनाव जीतने के लिए भाजपा की ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी गई। प्रचार के दौरान पीएम मोदी भी इन तीनों राज्यों में प्रादेशिक नेता की तरह सभाएं और रोड शो किए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पीएम मोदी की जिला स्तर पर होने वाली सभाओं पर एतराज भी जताया है। लेकिन भाजपा के नेता पीएम की सभाओं को अपनी रणनीति बता रहे हैं। असल में भाजपा को भी पता है कि इन तीनों राज्यों के परिणाम लोकसभा के चुनावों पर असर डालेंगे। कर्नाटक और हिमाचल की जीत के बाद कांग्रेस उत्साह में है और इसलिए लोकसभा के मद्देनजर विपक्ष का इंडिया गठबंधन बनाया गया। इस गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस ही कर रही है। यदि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का बहुमत मिलता है तो इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का महत्व और बढ़ेगा। कांग्रेस के अनेक नेता राहुल गांधी को अभी से ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता रहे हैँ। लेकिन यदि इन तीन राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलता है तो फिर विपक्ष के इंडिया गठबंधन की एकजुटता पर भी असर पड़ेगा। अभी कांग्रेस ने कई विषयों पर अपना बलिदान देकर इंडिया गठबंधन को बनाए रखा है। यदि इन राज्यों में भाजपा की जीत होती है तो फिर विपक्ष के गठबंधन में कांग्रेस का दबदबा कम होगा। ऐसे में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का सपना भी धरा रह जाएगा। कांग्रेस के सामने इन राज्यों में गुटबाजी की चुनौती भी है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जहां ऐंटी इनकमबेंसी की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस के नेताओं में गुटबाजी भी है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अपने अपने नजरिए से चुनाव में भाग लिया है। कांग्रेस हाईकमान भले ही इन दोनों नेताओं में एकता का दावा करें, लेकिन दोनों नेताओं के गुट अलग अलग है। यह गुटबाजी बागी उम्मीदवारों के तौर पर भी देखने को मिली है।
