लाखों दीए जलाकर किया जाता है मां गंगा का सम्मान।
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लाखों दीए जलाकर किया जाता है मां गंगा का सम्मान।
रिपोर्ट संदीप कुमार
विश्व प्रसिद्ध देव दीवाली देखने के लिए काशी पधारे धन्य हो जायेंगे
देवदीवाली की परम्परा सबसे पहले पंचगंगा घाट 1915 मे हजारो दिये जलाकर की गयी थी शुरुवात
गंगा नदी के किनारे जो घाट हैं रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखरी तक वहाँ लाखों दिये जलाकर गंगा नदी की पुजा की जाती है और माँ गंगा का सम्मान किया जाता है! देवदीवाली की परम्परा सबसे पहले पंचगंगा घाट 1915 मे हजारो दिये जलाकर शुरुवात की गयी ! प्राचीन परम्परा और संस्कृति में आधुनिकता का शुरुवात कर काशी ने विश्वस्तर पर एक नये अध्याय का आविष्कार किया था ! जिससे यह विश्वविख्यात आयोजन लोगों को आकर्षित करने लगा है ! देवताओं के इस उत्सव में परस्पर सहभागी होते हैं- काशी, काशी के घाट, काशी के लोग ! देवताओं का उत्सव देवदीवाली, जिसे काशीवासियों ने सामाजिक सहयोग से महोत्सव में परिवर्तित कर विश्वप्रसिद्ध बना दिया ! असंख्य दीपकों और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट व वरुणा नदी के तट एवं घाटों पर स्थित देवालय, महल, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं, मानों काशी में पूरी आकाश गंगा ही उतर आयी हो !
*क्यों भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाता है*.. ?
धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा को माँ गंगा की धारा के समान्तर ही प्रवाहमान होती है ! माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं व इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था !
मान्यता है की तीनों लोको मे त्रिपुराशूर राक्षस का राज चलता था देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुराशूर राक्षस से उद्धार की विनती की भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारी कहलाये। इससे प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देवदीवाली मनायी जाने लगी, काशी में देवदीवाली उत्सव मनाये जाने के सम्बन्ध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबन्धित कर दिया था, कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया, यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी देवदिवाली एक दिव्य त्योहार है प्रबुद्ध मिट्टी के लाखों दीपक गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते है एक समान संख्या के साथ विभिन्न घाटों और आसपास के राजसी आलीशान इमारतों की सीढ़ियों धूप और मंत्रों की पवित्र जप का एक मजबूत सुगंध से भर जता है ! इस अवसर पर एक धार्मिक उत्साह होता है । एक बाहरी व्यक्ति के लिए यह एक अद्भुत स्थल है, लेकिन जो भारतीयो के लिए यह पवित्र गंगा की पूजा करने का समय है यह कार्तिक (नवंबर-दिसंबर) के हिंदू महीने की पूर्णिमा पर पड़ता है! देव दीपावली भी शुरू होता है जो कार्तिक महोत्सव, शरद पूर्णिमा के दिन लंबे महीने की परिणति है ! कई रवानगी दीपावली समारोह सचमुच देवताओं के लिए वर्णन किया है। इन समारोहों में कई लाख मिट्टी के दीपक घाट की सीढ़ियों पर सूर्यास्त पर जलाया जाता है जब दूसरों के बीच में भी टॉलेमी और हुआंग त्सांग द्वारा दर्ज किया जता है ।
वाराणसी के एक बहुत ही खास नदी महोत्सव है और यह एक पवित्र शहर के लिए सभी आगंतुकों के लिए देखना चाहिए जिसकी जगमहाट और सौंदर्य से भाव विभोर मन आनंदित हो उठाता है और लोगों में उत्साह वर्धन के साथ नई उमंग तरंग जीवन के साथ खुशहाल लम्हों में अपनी तस्वीर लिख जगह बना लेते हैं।