तीर्थपुरोहित बच्चा पाठक की तीसरी पीढ़ी शनिदत्त पाठक की संवेदनशीलता : पत्रकार के भाई की उन्होंने की सहायता।
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तीर्थपुरोहित बच्चा पाठक की तीसरी पीढ़ी शनिदत्त पाठक की संवेदनशीलता : पत्रकार के भाई की उन्होंने की सहायता।
गैबीघाट के पुजारी रामानुज महाराज ने पत्रकार के दिवंगत भाई के प्रति व्यक्त किया शोक
मिर्जापुर। पीड़ा में संबल देने का भाव संवेदनशील दिल में ही प्रकट होता है न कि चट्टान जैसे कठोर भूमि में।
नवरात्र के पर्वों पर संपूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री मां विन्ध्यवासिनी देवी के मन्दिर में श्रीदुर्गासप्तशती ग्रन्थ के कवच अध्याय का पाठ करते वक्त ‘हृदये ललिता देवी, उदरे शूलधारिणी.. ‘ श्लोक का भी उल्लेख साधक करता है। इसका अर्थ ही है कि लालित्य की देवी ललिता देवी हृदय में लालित्य (संवेदनशीलता) का भाव प्रदान करें।
तीर्थपुरोहित बच्चा पाठक की तीसरी पीठी सेवा का त्रिकोण बना रही
धाम के तीर्थपुरोहित बच्चा पाठक उम्र के नौवें दशक में हैं। उनके लोकहित का अनुकरण तीसरी पीढ़ी तक कर रही है। राष्ट्रपति रहे स्व शंकर दयाल शर्मा तथा पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को मां विन्ध्यवासिनी धाम में दर्शन श्री पाठक ने कराया था। इन बड़े नेताओं के आगमन पर अष्टभुजा डांकबंगला और पूरा इलाका तथा नीचे तक की सड़क का जीर्णोद्धार हो गया था। श्री पाठक के पुत्र श्री राजन पाठक विंध्य पंडा समाज के लगभग 2 दशक पहले अध्यक्ष के रूप में नित्य मन्दिर की सफाई खुद करते रहे। रेलवे की कमेटियों में सदस्य के रूप में विन्ध्याचल तक इंटरसिटी ट्रेन की अनुमति कराई थी। इनके भतीजे के बी कालेज के पूर्व छात्रसंघ महामंत्री शनिदत्त पाठक भी सेवा के इन्हीं पदचिह्नों पर चल रहे। अभी हाल में वे डेंगू से पीड़ित हुए तो व्यवस्था को कोसने के बजाय खुद दवाओं का छिड़काव किया।
पत्रकार के दिवंगत भाई के प्रति शोक-संवेदना
यहां के प्रतिभाशाली पत्रकार समर शर्मा के भाई के निधन पर शनिदत्त पाठक 21/11, सोमवार को पत्रकार महेंद्र पांडेय के साथ शोक प्रकट करने उनके घर गए। परिवार की कच्ची गृहस्थी देखकर शनिदत्त पाठक ने 10,000/- की धनराशि अंतिम संस्कार हेतु होने वाले कार्यों के लिए प्रदान की।
गैबीघाट के पुजारी जी भी गए
इसी दिन यहां स्थित हनुमान जी मन्दिर के पुजारी महात्मा रामानुज दास शोक प्रकट करने गए। महाराज ने डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान की ओर से 2100/- की राशि परिवार को दी।
मन्दिर के पुजारी रामानुज महाराज ऐसे महात्मा है जो अपने नाम के आगे किसी प्रकार के महिमामण्डित उपाधियों तथा शब्दों का प्रयोग नहीं करने की सलाह देते हैं। वस्तुओं को जब श्रद्धालु भेंट करते हैं तो उसे तत्क्षण बांट देते हैं जरूरतमन्दों में। उनका मानना है कि मन्दिर लोकसेवा के केंद्र होते हैं न कि संग्रह के केंद्र।