October 1, 2025 22:28:26

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आज वर्तमान परिस्थिति में केन्द्र व बहुताय राज्यों में सत्ताधारी दल भाजपा अपने झूठ के कुचक्र में स्वतः ही फँस गई है।

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आज वर्तमान परिस्थिति में केन्द्र व बहुताय राज्यों में सत्ताधारी दल भाजपा अपने झूठ के कुचक्र में स्वतः ही फँस गई है। 2014 कि आम चुनाव में जिस प्रकार अन्ना हजारे और रामदेव के बनाये क्षद्म माहौल में भाजपा ने कांग्रेस को बदनाम करके जनता को सब्जबाग दिखाकर सत्ता में पहुंचने में कामयाब हुई परन्तु दिशाहीन व अनुभवहीन भाजपानीत सरकार कांग्रेस की नीतियों को आगे बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नही था।
यहाँ ज्ञातव्य है कि भाजपा विपक्ष में रहते हुये यूपीए सरकार की जिन नीतियों का विरोध करती थी उन्ही को आगे बढ़ाना उसकी मजबूरी बन गई मसलन एफडीआई, आधार, जीएसटी इंदिरा मुजीब एग्रीमेंट आदि आदि।
भाजपा ने जो सुनहरे भविष्य की बातें करके सत्ता को हथियाने में सफलता पाई थी उसे मूर्त रूप देने के लिये न उनके पास कोई विजन था न ही कोई सोच, यही कारण था कि कालेधन, सीमासुरक्षा जैसे मुद्दों पर सरकार यूटर्न लेती नजर आई।
भाजपा के शिखरपुरुष नरेंद्र मोदी ने जनता को बरगलाकर सत्ता पाने की अपनी सफलता और अपने वादों को पूर्ण न कर पाने की असफलता को साधने के लिये नई रणनीति अपनाई जिसमें दो नीतियों पर काम किया।
प्रथम कारपोरेट की अपनी लॉबिंग को और मजबूत करने के दृष्टिगत उनके हित की नीतियों को आगे बढ़ाया और निजीकरण के हर हथकण्डे को लागू किया,
दूसरे एजेंडे में जनता से कर दोहन की प्रक्रिया को मजबूत किया जिससे जनता बेसहारा हो और सरकार के सामने लाचार याचक के रूप में मौन रहे, काफी हद तक नरेंद्र मोदी अपने इन दोनों एजेंडों में कामयाब भी हुये।
यही कारण है कि जब विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम में ऐतिहासिक कमी आई फलस्वरूप विश्वभर में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में लगभग 60 प्रतिशत तक गिरावट आई उसके उलट भारत में पेट्रोलियम में 35 सके 45 प्रतिशत तक की बढोत्तरी हुई जिसका लाभ पेट्रोलियम सेक्टर के प्राइवेट पार्टनरों ने खूब उठाया जबकि इसपर जनता का हक था।
जनता के हक पर सरकार ने एक तरीके से कुठाराघात किया और सरकार के चाटुकार इसे देशहित में बताते रहे। सरकार प्रॉफिट मेकिंग ग्रुप की तरह काम करने लगी और सत्ताधारी दल के सहयोगी कारपोरेट के हित में सभी फैसले होने लगे।
एक तरफ जहाँ भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने बैंकों को राष्ट्रीकृत किया था वर्तमान सरकार उन बैंकों को निजी हाथों में सौपने की नीति पर काम करने लगी।
एकतरफ जहाँ किसान, युवा व छात्रों को बैंकों से कर्ज मिलना मुश्किल होने लगा वही बैंक के डिफॉल्टर कारपोरेट मित्रों को उनका लोन राईट ऑफ करके पुनः नये लोन मिलने लगे। जहाँ आज़ादी के बाद सभी सरकारों ने जनता के लिये पब्लिक सेक्टर यूनिट ( PSU) लगाती रही वही मौजूदा सरकार उन सभी PSU को निजी कम्पनियों के हाथों बेंचने लगी।
पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार ने जहाँ पारदर्शिता के लिये सूचना के अधिकार का कानून बनाया था मौजूदा सरकार उसके प्रावधानों को कमजोर करने के लिये कानून में संशोधन करने लगी।
पत्रकारिता का स्तर कारपोरेट के दखल से गिरने लगा परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजन मीडिया को अपने कारोबारी मित्रों के माध्यम से सरकार ने अपने मुखपत्र की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जबकि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है जो सरकार से जनता के सवाल करने का माध्यम होता था आज वही मीडिया जनता की बजाय सरकारी भाँटवृन्दावली गाने लगा और साथ ही जनता को ही समस्याओं के लिये जिम्मेदार ठहराने लगा।
किसानों के फसल के दाम और उनकी आमदनी को दुगुनी करने का वादा करने वाली भाजपा की सरकार ने फसल की जगह खाद व बीज के दाम लगभग तीन गुना बढ़ा दिया फिर प्रधानमंत्री बहुत ही बेगैरत भरे अंदाज में कहते है कि हम गरीबों के लिये काम कर रहे है।
युवाओं को प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार देने का वादा कर सत्ता पाने वाली नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में पिछले 45 वर्षों का बेरोजगारी का आंकड़ा पार कर गया, फिर प्रधानमंत्री ने कहा पकोड़े तलना भी रोजगार है, इस प्रकार शिक्षित बेरोजगारों का उपहास इस सरकार के लिये बहुत भारी पड़ने लगा।

मौजूदा हालात में अब गरीब जनता को ये समझ आने लगा है कि सरकार सिर्फ गरीबों से वोट व टैक्स लेकर अमीरों के लिये सुविधाओं का निर्माण करने में लगी है।
अच्छे दिन, 2 करोड़ रोजगार, सीमासुरक्षा, कालेधन की वापसी, किसानों की आय दुगुनी करना, महंगाई कम करना जैसे अपने वादों से सरकार ध्यान हटाने के लिये अब क्षद्महिदुत्व की आड़ में अपने कारोबारी मित्रों के लाभ के लिये सभी प्रयास कर रही है।
प्रधानमंत्री व सरकार के प्रवक्ताओं की एक बात पर गौर करें कि वो कहते हैं कि हम 80 करोड़ लोगों को भोजन करा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में एक सवाल लाज़िम है कि पूछा जाए और समझा जाये कि सालाना 2 करोड़ रोजगार का वादा था और अगर 8 वर्षों में रोजगार दिया गया होता तो लगभग 16 करोड़ लोगों को रोजगार मिला होता और एक औसत परिवार 5 लोगों का होता है तो कुल 80 करोड़ लोगों के भरण पोषण की व्यवस्था स्वतः ही हो गई होती और सरकार को इन्हें राशन नही देना पड़ता साथ ही 80 करोड़ लोग स्वाभिमान के साथ जीवनयापन कर रहे होते और अर्थव्यवस्था को भी गतिमान करने में काफी मदद मिलती।

अब यह लड़ाई पार्टी व विचारधारा से ऊपर अमीर व गरीब की हो गई है, गरीब जनता अब समझ गई है कि वह अब भी एक नही हुई तो चंद अमीरों के हाथ की कठपुतली बनकर रह जायेगी।

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