May 20, 2024 02:01:12

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धनतेरस से भैया दूज तक पढ़ने वाले प्रमुख पर्व एवं पौराणिक कथाएं

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धनतेरस से भैया दूज तक पढ़ने वाले प्रमुख पर्व एवं पौराणिक कथाएं

क्षेत्रीय संवाददाता थरवई

थरवई /धनतेरस से भाईदूज तक जानें हर दिन से जुड़ी पौराणिक कथा और मान्‍यताएं ।दीपावली का त्‍योहार खुशियां मनाने और खुशियां बांटने का त्‍योहार है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे को मिठाइयां खिलाकर खुशियां मनाते हैं। पांच दिन के इस त्‍योहार में हर दिन का अपना महत्‍व और मान्‍यताएं हैं। आइए आपको सभी दिनों से जुड़ी पौराणिक मान्‍यताओं के बारे में विस्‍तार से बताते हैं। महादेवी लक्ष्मी की पूजा और ज्योति का पावन पर्व है ‘दीपावली’। काम-क्रोध-लोभ-मोह के रूप में जो अंधकार अंत: में स्थित है, उसे दूर कर अंतर्मन को आलोकित करने की क्षमता मां लक्ष्मी की कृपा से भक्त को प्राप्त होती है। अंत: व बाह्य प्रकाश का एकाकार हो जाना जीवन का सार्थक होना ही लक्ष्मी कृपा है। लक्ष्मी की कृपा के बिना यह संभव नहीं है। समुद्र-मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक सबसे विशिष्ट रत्न है ‘लक्ष्मी‘। यह अनुपम सुंदरी, सुवर्णमयी, तिमिरहारिणी वर दात्री, प्रसन्नवदना, शुभा और क्षमादायी हैं। भगवान विष्णु ने इस अनुपमा को पत्नी के रूप में स्वयं वरण किया। यह प्रकाशमयी देवी अमावस की रात्रि के घटाघोप अंधकार को अपने प्रकाशपुंज से चीरती हुई समुद्र से प्रकट हुईं और समस्त वातावरण को ज्योतिर्मय कर दिया। इसी काली अमावस्या की रात्रि से हम प्रतिवर्ष जूझते हैं। समस्त वातावरण को दीपकों की कतारों से आलोकित कर लक्ष्मी का स्वागत और पूजन करते हैं। आइए जानते हैं धनतेरस से लेकर भाईदूज तक, हर दिन का महत्‍व।

धनतेरस : अमृत पात्र को स्मरण कर नए बर्तन लाएं घर पर
दीपावली के पहले आने वाले पर्वों में पहला पर्व है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरी हाथ में अमृत-कलश लिए प्रकट हुए थे। इनके दृष्टिपात से सूखी खेती हरित होकर लहलहा उठती थी। पौराणिक कथाओं के आधार पर सृष्टि में भयंकर अव्यवस्था उत्पन्न होने की आशंका के भय से देवताओं ने इन्हें छल से लोप कर दिया। वैद्य गण इस दिन धन्वंतरी जी का पूजन करते हैं और वर मांगते हैं कि उनकी औषधि व उपचार में ऐसी शक्ति आ जाए जिससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ हो। गृहस्थ इस दिन अमृत पात्र को स्मरण कर नए बर्तन घर में लाकर धन तेरस मनाते हैं। एक पौराणिक कथा के आधार पर इसी दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना से मिलने हेतु स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रस्थान किया थे । गृहणियां इस दिन से अपनी देहरी पर दीपक दान करती हैं, जिससे यमराज मार्ग में प्रकाश देख कर प्रसन्न हों और उनके गृहजनों के प्रति विशेष करुणा रखें। इस वर्ष यह पर्व 10 नवंबर 2023 शुक्रवार को मनाया जाएगा। इसी दिन प्रातः सूर्यादय से ही त्रयोदशी तिथि का आभाव हो जाएगा। अतः प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी होने के कारण प्रदोष व्रत के साथ-साथ प्रदोष काल में दीपदान का विशेष महत्व रहेगा।

नरक चौदस : पांच या सात दीये जलाने की परंपरा है । यह भगवान श्री राम के परम भक्त और पराक्रम के प्रतीक हनुमान जी की जयंती का दिन है। भगवान श्री कृष्ण ने भी इस दिन अत्याचारी व दंभी नरकासुर का वध करके उसकी कैद से सोलह हजार कन्याओं व अन्य कैदियों को मुक्त किया था। इस असुर ने अपनी अंतिम इच्छा बड़ी विनय के साथ प्रकट की। भगवान श्री कृष्ण ने वर दिया कि यह दिन सदैव नरक चौदस के नाम से याद किया जाएगा। इसी दिन भगवान विष्णु ने पराक्रमी व महान दानी राजा बलि के दंभ को अपनी कूटनीति से वामन रूप धारण कर नष्ट किया। इस वजह से इसे रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन पांच या सात दीये जलाने की परंपरा है। इस बार यह पर्व 11 नवंबर 2023, शनिवार को मनाया जाएगा।

दीपावली : महालक्ष्मी पूजन का दिन नरक चौदस के अगले दिन आता है दीपावली महापर्व और महालक्ष्मी पूजन। यह अनेक घटनाक्रमों से युक्त भी है। कार्तिक अमावस्या के दिन श्रीराम लंका विजय कर, सीता-लक्ष्मण-हनुमान व अन्य साथियों के साथ आकाश मार्ग से अयोध्या पधारे थे। जैन धर्म के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर अहिंसा की प्रतिमूर्ति भगवान महावीर स्वामी भी इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने भी आज ही के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। राम के स्वरूप को मानने वाले स्वामी रामतीर्थ परमहंस का जन्म और जल समाधि दोनों ही दिवाली के दिन हुए। सिखों के छठे गुरु हर गोविंद जी और पराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने भी आज ही के दिन विजय पर्व मनाया था। इस वर्ष विक्रम संवत् 2080 में दीपोत्सव 12 नवंबर सन् 2023 रविवार को धर्मशास्त्र अनुसार प्रदोषकाल एवं निशीथकाल व्यापिनी अमावस्या में मनाया जाएगा। यह कई वर्षों बाद स्वाति नक्षत्र से युक्त अमावस्या में मनाया जाएगा। दीपावली महापर्व में लक्ष्मी पूजन का प्रदोष काल में सर्वाधिक महत्व है। इसमें प्रदोषकाल गृहस्थियों एवं व्यापारियों के लिए तथा निशीथकाल आगम शास्त्र विधि से पूजन हेतु उपयुक्त है। चतुर्दशी या प्रतिपदा में दीपावली-महालक्ष्मी पूजन आदि कृत्य करने का शास्त्रीय विधान नहीं है। इस वर्ष विक्रम संवत् 2080 में कार्तिक कृष्ण अमावस्या रविवार 12 नवंबर सन् 2023 को अपराह्न 02 बजकर 45 मिनट से ही आरंभ होकर अगले दिन सोमवार को अपराह्न 02 बजकर 56 मिनट तक विद्यमान रहेगी। दीपावली पूजा में विहित स्वाति नक्षत्र भी सूर्योदय से लेकर रात्रि 02 बजकर 50 मिनट तक भोग करेगा। प्रदोषकाल जिसका दीपावली-महालक्ष्मी पूजन मे सर्वाधिक महत्व होता है, सायंकाल 5 बजकर 27 मिनट से रात्रि 8 बजकर 09 मिनट तक रहेगा।दिवाली के साथ बना सोमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग, इस मुहूर्त में पूजन करना शुभ लाभदायक होगा।

गोवर्द्धन: घी, दूध, दही से युक्त भोग भगवान को लगाएं यह पर्व भारत की कृषि-प्रधानता, पशुधन, उद्योग व व्यवसाय का प्रतीक है। इसी दिन श्रीकृष्ण ने अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को छत्र की तरह धारण करके वनस्पति और लोगों को इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी। यह गोवर्धन पर्व अन्नकूट के नाम से विख्यात है। इस दिन नाना प्रकार के खाद्यान्न बनाए जाते हैं। घी, दूध, दही से युक्त इनका भोग लगाया जाता है। शिल्पकार व श्रमिक वर्ग आज के दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज चहुंमुखी विकास व वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं। इस वर्ष यह पर्व 13 नवंबर 2023 सोमवार को मनाया जाएगा।

भैयादूज : भाई-बहन के स्नेह सूत्र को मजबूत करने का दिन स्नेह, सौहार्द व प्रीति का प्रतीक- यम द्वितीया या भैया-दूज। इस दिन कार्तिक शुक्ल को यमराज अपने दिव्य स्वरूप में अपनी भगिनि यमुना से भेंट करने पहुंचते हैं। यमुना यमराज को मंगल तिलक कर स्वादिष्ट व्यंजनों का भोजन कराकर आशीर्वाद प्रदान करती है। इस दिन बहन-भाई साथ-साथ यमुना स्नान करें तो उनका स्नेह सूत्र अधिक सुदृढ़ होगा। इस बार भैया दूज 14 नवंबर मंगलवार को मनाया जाएगा।

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