सड़कों पर दौड़ते तांगे करा रहे पुराने दिनों का एहसास
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सड़कों पर दौड़ते तांगे करा रहे पुराने दिनों का एहसास
AiNभारत न्यूज़ ब्यूरो रिपोर्ट प्रयागराज
प्रयागराज। महाकुम्भ के दौरान सड़कों पर तांगों का चलना उन पुराने दिनों का एहसास कराता है, जब दृश्य आम बात होती थी। शुक्रवार को संगम से नैनी की तरफ जाने वाली सड़क पर कुछ ऐसा ही दृश्य दिखाई पड़ा। कानों में छम-छम की आवाज आई। सड़क पर देखा तो चालक घोड़े की लगाम ढीली किए पूरी रफ्तार में तांगा दौड़ा रहा था। चार सवारियों को भी बैठाए हुए था। पूछने पर अपना नाम अल्लू बताया। बोला, नैनी की ओर से संगम तक अस्थि विसर्जन को आने वाले परिवार और श्रद्धालुओं को इस पर बैठाया जाता है। एक बार में चार से पांच सवारियां बैठती हैं। नैनी स्टेशन से पुराने पुल तक का एक सवारी का तीस रुपये लिया जाता है। दिन भर में सात से आठ सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। जिसमें घोड़े के खर्च खुराक का तीन सौ रुपये निकल जाता है। इसके अलावा सावन के महीने में अरैल में होने वाली तांगा दौड़ प्रतियोगिता में भी प्रतिभाग करते हैं। जिसमें पुरस्कार के साथ घोड़े की खुराक का खर्च निकल आता है।अल्लू ने बताया कि वह अरैल के पास रहते हैं। शादी-विवाह के दौरान बग्घी में इस्तेमाल के लिए घोड़ा रखा हुआ है। लगन के दिनों में अच्छी कमाई हो जाती है। एक लगन का आठ से दस हजार रुपये मिलता है। बग्घी में दो घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। सजावट के लिए तीन हजार रुपये का फूल माला लग जाता है। खर्च खुराक काटने पर एक लगन में ढाई से तीन हजार रुपये की बचत हो जाती है। बताया कि नैनी से संगम तक तीन से चार तांगे चला करते हैं। इसके अलावा अलोपीबाग चुंगी से कचहरी तक भी तांगे चला करते हैं। अल्लू ने बताया कि सीएनजी, डीजल गाड़ियों के चलने से तांगे की रफ्तार धीमी हो गई है। इस पर अब कोई बैठना नहीं चाहता। मेला समाप्त हो जाने पर वह किराए की गाड़ी लेकर सवारियां ढोने का काम करेंगे। उसी से अपना और परिवार का खर्च चलाएंगे।
