निर्दोष साबित हुए धुन्नू तिवारी, कोर्ट से बाइज्जत बरी — झूठे पॉक्सो केस में प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
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निर्दोष साबित हुए धुन्नू तिवारी, कोर्ट से बाइज्जत बरी — झूठे पॉक्सो केस में प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
पॉक्सो एक्ट जैसे संवेदनशील कानून के तहत झूठे केस में फंसे निर्दोष धुन्नू तिवारी को आखिरकार न्याय मिल गया। कई दिनों की कानूनी लड़ाई, सामाजिक बहिष्कार और प्रशासनिक बेरुखी के बावजूद,पिताके आत्महत्या करने के बाद कोर्ट ने तिवारी को बाइज्जत बरी करते हुए साफ शब्दों में कहा कि “मामला पूरी तरह से निराधार व झूठा है।”
यह फैसला न सिर्फ धुन्नू तिवारी के लिए राहत भरा रहा, बल्कि पूरे जिले के लिए एक सबक भी — कि कानून का दुरुपयोग न केवल एक व्यक्ति को बर्बाद कर सकता है, बल्कि समाज की आत्मा को भी झकझोर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
धुन्नू तिवारी पर पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे। प्रारंभिक जांच के बिना ही पुलिस ने केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। इस बीच, न तो परिवार की बात सुनी गई, न ही गवाहों को ठीक से जांचा गया। इसके बाद उसके पिता ने आरोपियों के नाम लिखते हुए आत्महत्या कर लिया |
पूरा मामला दुर्भावनापूर्ण प्रतीत हो रहा था, जो अब कोर्ट के फैसले से साबित भी हो गया।
कोर्ट ने सबूतों की गहराई से समीक्षा करते हुए साफ तौर पर कहा कि शिकायत “मनगढंत और पूर्वनियोजित” थी।
“जो लोग मेरे आंसुओं से खेलें, एक दिन खून के आंसू रोएंगे” — धुन्नू तिवारी
रिहाई के बाद धुन्नू तिवारी ने भावुक होकर मीडिया से कहा:
“मैं जानता था कि सच के रास्ते में देर हो सकती है, पर अंधेरा हमेशा नहीं रहता। जिन लोगों ने मुझे झूठे केस में फंसाया, अब एक दिन वही खून के आंसू रोएंगे।”
उन्होंने अपनी लड़ाई में साथ देने वाले सभी सहयोगियों, वकीलों और समर्थकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यदि समाज ऐसे झूठे मामलों में चुप रहेगा, तो निर्दोषों को यूँ ही जिल्लत झेलनी पड़ेगी।
प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल
इस पूरे प्रकरण में कौशांबी प्रशासन की भूमिका भी कटघरे में आ गई है। बिना निष्पक्ष जांच के तिवारी को गिरफ्तार करना, पीड़ित की बात को पूरी तरह नजरअंदाज करना और बिना ठोस सबूतों के चार्जशीट दाखिल कर देना — ये सारी बातें प्रशासन की संवेदनशीलता और निष्पक्षता पर सवाल उठाती हैं।
अब सवाल यह है — क्या प्रशासन धुन्नू तिवारी से माफी मांगेगा? क्या इस झूठे केस के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होगी?
समाज को भी आत्मनिरीक्षण की ज़रूरत
धुन्नू तिवारी के साथ जो हुआ, वह केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं, बल्कि हमारे समाज की सोच पर भी सवाल है। झूठे आरोप लगते ही समाज का अन्य वर्ग ब्राह्मण समाज को अपराधी मानने लगा मानो आरोप सिद्ध हो गए हों।
अब जब वह निर्दोष साबित हो चुके हैं, तो क्या वह खोया सम्मान, भरोसा और सामाजिक प्रतिष्ठा उन्हें वापस मिलेगी?
सहयोगियों ने निभाया साथ, बना इंसाफ़ का आधार
इस लड़ाई में धुन्नू तिवारी अकेले नहीं थे। उनके कुछ मित्र, सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्ण आर्मी और कानूनी सलाहकार लगातार उनके साथ खड़े रहे। यह लड़ाई व्यक्तिगत नहीं थी, यह कानून के दुरुपयोग के खिलाफ एक सामूहिक आवाज थी।
क्या कहता है कानून?
पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) बच्चों के यौन शोषण से सुरक्षा के लिए बनाया गया है। यह एक कड़ा कानून है, जिसमें सख्त सजा का प्रावधान है। मगर इसी की सख्ती, यदि झूठे मामलों में इस्तेमाल हो, तो निर्दोषों के लिए यह कानून काल बन सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे झूठे मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है, और अब ज़रूरत है कि झूठे मुकदमों के लिए काउंटर एक्शन का स्पष्ट प्रावधान हो।
न्याय हुआ, लेकिन देर से — अब जवाबदेही की बारी है
धुन्नू तिवारी की रिहाई न केवल उनके लिए राहत है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि झूठ, कितना भी परोसा जाए, कभी सच्चाई को दबा नहीं सकता।
अब देखने वाली बात होगी कि कौशांबी प्रशासन इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है। क्या झूठे केस दर्ज कराने वालों पर कोई कार्रवाई होगी? क्या प्रशासन तिवारी से सार्वजनिक माफी मांगेगा? इसके लिये एक sit गठित हो गयी है और सबसे अहम — क्या इस मामले के बाद पॉक्सो जैसे कानूनों के दुरुपयोग पर गंभीर चर्चा होगी?