मंगला आरती एक अर्चक द्वारा प्रतिदिन प्रातः काल
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दिनांक 08/07/2025 मंगलवार के दिन करिए पांच अर्चकों द्वारा संगीतमय माॅ गंगा आरती का दिव्य दर्शन प्रतिदिन शाम 6.30 PM से 7.30 PM तक
मंगला आरती एक अर्चक द्वारा प्रतिदिन प्रातः काल
स्थान – माॅ विंध्यवासिनी पक्का घाट विन्ध्याचल
AiN भारत न्यूज ब्यूरो रिपोर्ट हरिशचन्द्र निषाद
आयोजक विन्ध्य विकास परिषद
विन्ध्याचल धाम जो आदिशक्ति महारानी माँ विन्दुवासिनी का धाम है यही माँ विंदु की अधिष्ठात्री देवी है जिस प्रकार विंदु के बिना एक रेखा का सृजन नहीं हो सकता उसी प्रकार आदिशक्ति महारानी विन्दुवासिनी जिसे विन्ध्य पर्वत निवासिनी विन्ध्यवासिनी भी कहते है उसके बिना इस सृष्टि की परिकल्पना नहीं कि जा सकती माँ ही त्रिदेव की जननी है। माँ के इस विन्ध्य धाम में तीन विंदु एक समान दूरी पर तीन महा शक्तियों के साथ एक दुर्लभ त्रिकोण महा लक्ष्मी महा कालीऔर महा सरस्वती की शक्ति के साथ बनाती है जो यहाँ यात्रा करनेवाले यात्रियों को त्रिकोण दर्शन से जहाँ उनके जीवन के असंतुलन को संतुलित करने का काम करती है वहीं यहाँ प्रवाहित भागीरथी गंगा चौथी शक्ति के रूप में इस धाम को दुर्लभ बना एक जीवनदायनी शक्ति प्रदान करती है।
विन्ध्य गंगा के महात्म पर प्रकाश डाले तो माँ गंगा ही है जो विन्ध्याचल धाम को इस धरा पर एक दुर्लभ तिर्थ बनाती है। क्यों की गंगा के गंगोत्री से गंगा सागर की पूरी अथक यात्रा को यदि देखें तो यही पर गंगा ने विश्राम किया है जिसका वर्णन विंध्यखण्ड की कथा औषनश उप महा पुराण में आया भी है जहाँ माँ गंगा ने पाण्डू देश के राजा पुण्यकृति को कहा है की विन्ध्याचल हमारा निवास स्थान है यहाँ मैं विशेष रूप से पाप का शमन करती हूँ यहाँ कोई मुझे सिर्फ अपनी नंगी आँखों से बस निहार ले तो मैं उसके सात जन्म के पाप नष्ट कर देती हूँ। क्यों कि इसी धाम में गंगा का संगम विन्ध्य पर्वत से हुआ है यहाँ माँ विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के ऊपर से बही जिससे विन्ध्यपर्वत ने भगवती गंगा को अपनी सम्पूर्ण अथक यात्रा में थोड़ा विश्राम करनें का अवसर प्रदान किया । जिसका प्रमाण यहाँ शिवपुर का रामशिला है जहाँ त्रेता युग में स्वयं भगवान राम ने आकर विन्ध्य गंगा के संगम पर अपने पितरों का पिण्ड दान किया जिसके बाद उसे राम गया के नाम से जाना जाने लगा ।
विन्ध्य धाम का विन्ध्य गंगा का संगम ही इसे मणिद्वीप बनाता है भारत वर्ष के सम्पूर्ण शक्ति पीठों में विन्ध्याचल ही एक मात्र ऐसा शक्तिपीठ है जिसे भगवती पतित पावनी गंगा स्पर्श करती और इस धाम को ईसी स्पर्श से सिद्धिपीठ बना देती है। विन्ध्यपर्वत श्रृंखला से निकलने वाली दो नदियों ने भी इस धाम में गंगा के साथ संगम कर दुर्लभ तीर्थ बना दिया एक नदी है कर्णावती जिसका संगम गंगा से जहाँ हुआ है उस संगम तट पर स्नान करना ब्रह्महत्या जैसे महापाप को नष्ट करने वाला है यहीं त्रेता युग में रावण के वध से लगे महापाप से मुक्ति के लिए स्वयं भगवान श्री राम ने भी कर्णावती गंगा संगम तट पर स्नान किया। एक और नदी जिसे औघजला नदी कहते है उसका भी यहाँ गंगा से संगम हुआ है उसी संगम तट पर वामन भगवान का मंदिर है इस संगम तट पर स्नान से समस्त पाप नष्ट होते हैं और एक अश्वमेघ यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है ऐसी हमारी पौराणिक मान्यता है। यहा पर माँ गंगा चन्द्रमा अकार मे है
जिस गंगा घाट पर माँ गंगा की दैनिक आरती होती है उसे विन्ध्य धाम में माँ विन्ध्यवासिनी पक्का घाट के नाम से जाना जाता है यहीं माँ के लक्ष्मी कुण्ड विद्यमान है जहाँ माँ राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी माँ विन्ध्यवासिनी प्रतिदिन स्नान करने आती है ऐसी मान्यता है व दैनिक चारों आरती में होने वाले माँ के स्नान के चरणों का जल त्रिदेव की मूर्तियीं को स्नान करा कर सम्पूर्ण शक्ति के साथ माँ गंगा से जिस स्थल पर गिरता है उसे लक्ष्मी कुण्ड कहतें हैं वो विन्ध्याचल के माँ विन्ध्यवासिनी पक्का घाट पर स्थित है जहाँ माँ गंगा की दैनिक आरती लगभग पंद्रह वर्षों से होने वाली भव्य आरती दर्शन से भक्तों को माँ विन्ध्यवासिनी की सम्पूर्ण शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर भक्त सम्पूर्ण आनंद की प्राप्ति करता है