डाला छठ के दो चक्रीय-स्नान में पहले चक्र में प्रशासन को मिला 100 में 100 नम्बर।
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डाला छठ के दो चक्रीय-स्नान में पहले चक्र में प्रशासन को मिला 100 में 100 नम्बर।
रिपोर्ट संदीप कुमार
अधिकारियों के नाम का भी प्रभाव : DM दिव्या मित्तल के नाम के चलते व्यवस्था दिव्य और SP के नाम का प्रभाव, लोगों ने व्यक्त किया संतोष
ADM, ASP, CO, इंस्पेक्टर के चक्रमण से उचक्के हो गए फेल
स्नानार्थियों ने प्रशासन को कहा : Thanks
बड़े अधिकारियों का रिहर्सल रहा सफल
खांटी बिहारी परिवार रात भर घाट पर ही रहेगा, सुबह सूर्य को अर्घ्य के बाद जाएगा घर
20 महिलाओं की बनती है टोली, सब बारी-बारी सुनाती हैं छठी मइया की कहानी
मिर्जापुर। डाला छठ में अस्ताचल के सूरज से आँचल फैलाकर दुआ मांगती व्रती महिलाओं के गंगा-घाटों पर जमघट का फायदा उठाकर गहने-आभूषण को गटक करने में इस बार कोई अपराधी सफल नहीं हो सका। कारण यह था कि बड़े अधिकारियों में कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र, DIG आर पी सिंह, DM दिव्या मित्तल और SP संतोष कुमार मिश्र पिछले 72 घण्टे से लगातार कपाल-भाती प्रणायाम कर रहे थे। उच्च अधिकारियों की मंशा के अनुरूप ADM शिवप्रताप शुक्ल, ASP श्रीकांत प्रजापति, CO City प्रभात कुमार राय और प्रभारी निरीक्षक, सिटी कोतवाली अरविंद कुमार मिश्र सायंकालीन स्नान के पहले से घाट-घाट का जायजा लेने निकल पड़े। बड़े अधिकारियों के राउंड से निचले तबके तक के दरोगा, सिपाही, होमगार्ड भी चुस्त-दुरुस्त रहे, लिहाजा छल-भेषी उचक्के भीड़ में घुस कर अपना करतब कहीं न कहीं पिछले कुछ वर्षों में निकाल लेते रहे हैं।
नारघाट, पक्काघाट, बरियाघाट, कचहरी घाट सहित सभी घाटों पर रही भीड़ : कुछ डेंगू का प्रभाव भी दिखा
नगर के सभी घाटों पर व्रती महिलाएं, उनके परिवार के सदस्य सिर पर फल-फूल, गन्ना लेकर सायं 4:30 बजे से पहुंचने लगे। त्रिमुहानी सकरा होने की वजह से यहां फोर-ह्वीलर आते जाम तो लग रहा था लेकिन जिन वाहनों पर प्रसाद, डलिया, गन्ने लदे थे, उन्हें छोड़कर अन्य वाहनों को पुलिस अप्सरा सिनेमा की ओर बढ़ा दे रही थी। जबकि बरियाघाट में इस बार अन्य वर्षों की भांति जाम कम रहा। जबकि यहां बरियाघाट तिराहे (संस्कृत पाठशाला) से तारकेश्वर मन्दिर वाले मार्ग पर 5 मीटर की दूरी पर बैरिकेडिंग की गई थी। पुलिस चौकी की ओर से आवागमन नहीं रोका गया था। इसके बावजूद भीड़ अस्त-व्यस्त नहीं हुई। कुछ का मानना था कि सुव्यवस्था की वजह से ऐसा है तो कुछ का यह भी मानना था कि डेंगू से पीड़ित लोगों के न आने से भीड़ कम थी। सुन्दरघाट, ओलियरघाट में कम भीड़ थी जबकि बाबाघाट फुल कैपिसिटी में था। नारघाट पर भी धक्कामुक्की जैसी स्थिति नहीं थी।
नारघाट के मल्लाहों की वाह-वाह
यहां पर बैरिकेडिंग के बाद मल्लाह नाव लेकर सजग थे ताकि यदि कोई घटना हो तो कूद पड़े। चूंकि इस घाट के मल्लाह इसी नगर के हैं। इसलिए वे डटे रहते हैं। दुर्घटना में बचाव की सजगता के चलते यहां हर वर्ष अधिक लोग आते हैं।
नाव के अन्य घाट
प्रतिदिन नाव से आरपार के कई अन्य घाट भी हैं। लेकिन इन घाटों पर नाव-सन्चालन करने वाले उस पार कोन ब्लाक के विभिन्न गांवों के हैं इसलिए इन घाटों पर नाव नहीं देखी गई ।
चेंजर रूम नहीं
पक्कघाट कहने को एक घाट है लेकिन इससे जुड़े हैं दो अन्य घाट भी जिसमें संकटाघाट और दाऊजी घाट। यहां सिर्फ पक्केघाट पर चेंजर रूम बना था। अन्य घाटों पर भी भीड़ थी लेकिन रूम नहीं थे।
बिदक रही थी आस्था
लगभग सभी घाटों पर जब व्रती महिलाएं पानी में उतर रही थीं तो दीपावली पर घर-घर से प्रवाहित की गई गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां पैरों तले पड़ जा रही थी। भगवान की मूर्ति पैरों से दबने के चलते व्रती दुःखी थीं। हुआ यह कि दीपावली के दूसर्व दिन 25 अक्टूबर को मूर्तियां विसर्जित हुईं। इन पांच दिनों में जलस्तर नीचे हुआ तो बालू में मूर्तियां जो बहाई गई थीं, वही मूर्तियां दब रही थीं। धुंधीकटरा निवासी हिमांशु रस्तोगी अपनी मां को स्नान के लिए गए थे। जब मूर्तियां काफी मिलने लगीं तो उसे निकाल कर अन्यत्र रखना पड़ा।
रात भर घाट पर डेरा
नारघाट में स्नान के बाद दो परिवारों के दसियों लोग पूरी रात घाट पर रुके हैं। वे रात्रिजागरण करेंगे। आपस में छठी मइया की कहानी सुने-सुनाएंगे। नियमतः 20 महिलाओं की टोली होनी चाहिए लेकिन इस टीम में बिहार न होने से इतनी महिलाएं नहीं जुटा सकीं।
कचहरी में साहब के लिए गेट खुला
कचहरीघाट में कचहरीबाबा वाला गेट रविवार की वजह से नहीं खुला था जबकि जिलाजज के न्यायालय की ओर का गेट भी आधा बंद था। एक वाहन आते गेट पर खड़े पुलिस और होमगार्ड एलर्ट हुए। गेट खुला। पूछने पर बताया कि साहब का परिवार है। किस साहब का है, यह नहीं बता सके।
लेट कर जाती व्रती महिलाएं
आस्था झुकना और विनम्रता की ट्रेनिंग भी देती ही है। कई महिलाएं सड़क पर लेटते हुए कठिन संकल्पों के साथ स्नान के लिए आईं । पीछे से परिवार के लोग भी साथ रहे। इस तरह की आस्था 50 वर्ष से ऊपर की ही महिलाओं में देखा गया। त्रिमोहानी से सत्तीरोड की ओर घूमते शीशे की दुकान के मालिक रहे स्व मूलचंद मोदनवाल की 55 वर्षीया पुत्रवधू श्रीमती आरती लेट कर गंगा तक गई। इसी तरह कुछ महिलाएं अन्य घाटों पर भी गईं।