प्रयागराज हमेशा से ही कलाकारों का देश रहा है
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प्रयागराज हमेशा से ही कलाकारों का देश रहा है। प्रयागराज के अस्तित्व में कवियों और कलाकारों के लिए वह स्थान है जो शायद किसी अन्य शहर प्रांत या राज्य में नहीं होगा। देश का हर नामचीन कलाकार कहीं ना कही प्रयाग के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है, और यह अस्तित्व उसे कलाकार के जीवन के उत्तम स्थान पर विराजमान है। चाहे महाकवि तुलसीदास हो या फिर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, हर कोई प्रयाग की पावन धरा से, गंगा यमुना और सरस्वती के पावन संगम को अपने मन में बसाए हुआ है।
लेकिन इसी धारा में कुछ ऐसे भी कलाकार या महापुरुष है जिन्होंने अपने क्षेत्र में अद्भुत कार्य जरूर किए हैं। लेकिन आज ये विभूतियां अंधेरे में समाकर काल के ग्रास बन गए हैं। इन्हीं में से एक अद्भुत प्रतिभा के धनी स्वर्णकार समाज से अमरज्योत व्यक्ति स्वर्गीय रामसुंदर दास उर्फ आधुनिक भारत के ब्रह्मा जी हैं।
रामसुंदर दास जी का जन्म 1895 में प्रयागराज से मात्र 20 किलोमीटर दूर हनुमानगंज के दुर्वासा आश्रम के पास हुआ था। बचपन से ही विद्यालय का मुंह उन्होंने कभी नहीं देखा था, लेकिन अनपढ़ होते हुए भी उनके अंदर प्रतिभा की कमी नहीं थी। अपने 95 वर्ष की आयु में उन्होंने 160 से ज्यादा चालीसा की रचना की, जिसमें मुख्य प्रयाग चालीसा अलोपी चालीसा और कल्याणी चालीसा प्रमुख रूप से है। इसके अलावा सैकड़ो चौपाइयों के रचयिता भी है। उनके लेख और रचनाओं को क्या धार्मिक महा मंडलेश्वर,या फिर आधुनिक भारत के महान कवियों में से गिरे चुने महाकवि महादेवी वर्मा, निराला ने सराहा है बल्कि उनके लेखन प्रतिभा और उनके आश्चर्य शिल्प कला को मान्यता दी है। न केवल लेखन पारंगत बल्कि शिल्प कला, आयुर्वेद एवं अद्भुत हस्तकला के भी धनी रहे हैं। महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी स्वयं प्रयागराज प्रवास के दौरान उनके आवास पर आते जाते रहे। देश-विदेश से भी इनको इनके साहित्य रचना और अद्भुत वैज्ञानिक क्षमता से पहचान एवं मान्यता दी है। इनके द्वारा रचित सूर्य घड़ी आज भी दुर्वासा ऋषि के आश्रम में देखने को मिलता है। उस समय जब पारंपरिक चित्रकला अपने चरम पर नहीं था उन्होंने त्रिय आयामी चित्रकला से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था,आज भी इसके उदाहरण उनकी आवास पर देखे जा सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने आश्चर्य रूप से कई ऐसे आविष्कार भी किया जो उसे समय एक ग्राम वासी के लिए करना स्वप्न के समान था। आज भी उनके घर पर गांधी चबूतरा और मंदिर देखने से साफ तौर से पता चलता है कि वह कितने प्रतिभा के धनी थे। बिना मात्रा की चौपाई लिखना हो या फिर ऐसे चौपाइयां जिनका उल्टे या सीधा पढ़ना एक समान होना एक अद्भुत प्रतिभा का दर्शन होता है।
2 अक्टूबर 1990 को इस महान विभूति के द्वारा अंतिम सांस लिया गया,लेकिन इस पूरे समय काल में इन्होंने जो ख्याति अर्जित की थी आज वह धूमिल होती जा रही है। हस्तलिखित पुस्तकों के अलावा इन्होंने अपने पूरे जीवन काल में जवाहरलाल नेहरू से मित्रता महात्मा गांधी का आशीर्वाद और पुत्री के रूप में इंदिरा गांधी से स्नेह प्राप्त किया। आज भी इनके पास इंदिरा गांधी और उसके बाद संजय गांधी के विवाह का निमंत्रण पत्र है जो यह बताता है कि यह महान विभूति गांधी नेहरू परिवार से कितना स्नेहिल रहा है। लेकिन परिवारवाद और समाजवाद के बीच इन्होंने जनकल्याण और समाजवाद को ही चुना और अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकों से जो आमदनी होती थी उसका पूरा खर्चा ग्राम के विकास के लिए करते थे। गांव और शहर के बीच इन्होंने बहते नाले पर पुल का निर्माण हो या फिर सड़क का निर्माण गांव के भूखे परिवार की रोटी हो या फिर बीमार व्यक्ति को औषधि इन्होंने हमेशा सब कुछ अपनी किताबों की बिक्री से होने वाले आमदनी से ही किया। आम जनमानस की सेवा की और उनकी यह सेवा आज भी गांव के लोग भिन्न-भिन्न रूप से याद करते हैं।
