अमृतपान समान है कुंभ स्नान” कथा वाचिका शाकाम्भरी जी
“अमृतपान समान है कुंभ स्नान” कथा वाचिका शाकाम्भरी जी
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥
तीर्थ राज प्रयाग में प्रति वर्ष माघ के माह में( माघमेला) का आयोजन होता है माघ में जब सूर्य देव मकर राशि पर आते हैं तब ये दिव्य आयोजनहोता है जो इस वर्ष महाकुंभ के दिव्यतम रूप में आयोजित हुआ है महाकुंभ एक दुर्लभ आयोजन है जो 12 पूर्ण कुंभ के बाद यानी 144 साल बाद आता है. इसीलिए इस आयोजन को महाकुंभ कहते हैं. यह सिर्फ प्रयागराज में आयोजित होता है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों नदियों का पवित्र संगम होता है.कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ घड़ा। यह वैदिक ग्रन्थों में पाया जाता है। इसका अर्थ, अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है। मेला शब्द का अर्थ है, किसी एक स्थान पर मिलना, एक साथ चलना, सभा में या फिर विशेष रूप से सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना। यह शब्द ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में भी पाया जाता है। इस प्रकार, कुम्भ मेले का अर्थ है “अमरत्व का मेला” है।
